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१५८.बीवनमा धर्म
४ सम्यक कर्मान्त
अष्टाणिक माग का चौथा अग सम्यक कर्मान्त है। मनुष्य की सदगति या दुर्गति का कारण उसका कम ही होता है। कम के ही कारण जीव इस लोक में सुख या दुख भोगता है तथा परलोक म भी स्वग या नरक का गामी बनता है। धम्मपद का कथन है कि असत्यवादी नरक म जाते हैं और वह मनुष्य भी जो किसी काम को करके भी नहीं किया ऐसा कहता है। दोनो प्रकार के नोच कम करनेवाले मनुष्य मरकर एक समान होते हैं। अतएव मनुष्य को चाहिए कि सब प्रकार के बरे कर्मों का परित्याग कर दे और पचशील का आचरण कर ।
दीघनिकाय म हिंसा चोरी और काम मिथ्याचार से विरत रहना सम्यक कर्मान्त बतलाया गया है । धम्मपद म कहा गया है कि जो धीर पुरुष काय वाणी
और मन से सयत रहते हैं वास्तव में वे ही सुसयमित है। ५ सम्यक माजीव
ठीक आजीविका । आय श्रावक मिथ्या आजीव (शठी जीविका ) को छोडकर सम्यक आजीव से जीविका चलाता ह । बिना जीविका के जीवन धारण करना कठिन ह वस्तुत असम्भव ह । मानवमात्र को शरीर रक्षण के लिए कोई न कोई जीविका ग्रहण करनी ही पड़ती है। परन्तु यह जीविका अछी होनी चाहिए जिससे दूसरे प्राणियो को न तो किसी प्रकार का क्लेश पहुचे और न उनकी हिंसा का अवसर आवे । भगवान बद्ध ने उस समय को पांच जीविकाओ को हिंसाप्रवण होने से अनुचित ठहराया है
१ हथियार का यापार २ प्राणियो का व्यापार ३ मास का यापार ४ शराब का रोजगार और ५ विष का व्यापार।
अभतवादी निरय उपेति यो वापिकत्वा न करोमि चाह । उभो पि त पेच समा भर्वा त निहीनकम्मा मनुजा परत्य ।।
धम्मपद गाथा-सस्या ३६। २ धम्मपद २४६ २४७ दीघनिकाय द्वितीय भाग १ २३३ । ३ दीघनिकाय २१३१२ पृ २३३ । ४ कायन सवुता धीरा अथो वाचाय सवता ।
मनसा सवुता धीरा ते वे सुपरिसवता ।। धम्मपद गाथा सख्या २३४ । ५ दीघनिकाय द्वितीय भाग प २३३ ।