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________________ बोद तपा-माचार १७ सभी कुशल धर्मों से सप्रयुक्त वितक नष्क्रम्य सम्यक सकल्प है। इसे यों भी कह सकते हैं कि अन्यापाद एव अविहिंसा से अवशिष्ट निर्दुष्ट सभी वितक नैष्क्रम्य सम्यक सकल्प है। व्यापाद शब्द का अर्थ हिंसा या परविनाश चिन्ता है इसका विपरीत भाव मत्री ही अव्यापाद है । इसलिए सभी प्राणियों के प्रति हिंसा से विरत होकर मैत्रीपूर्ण व्यापार करने का दृढ निश्चय ही अव्यापाव है। धम्मपद में कहा गया है कि इस ससार में वैर से वैर कभी शान्त नही होते अपितु अवर ( मैत्री ) से ही शान्त होते है। हिंसा से विरत होना या हिंसा के विचार का न होना ही अविहिंसा सम्यक-सकल्प है। धम्मपद में कहा गया है कि जो सुख चाहनेवाले प्राणियों को अपने सुख की चाह से दण्ड से मारता ह वह मरकर सख नही पाता और जो सख चाहनेवाले प्राणियों को अपने सुख की चाह से दण्ड से नही मारता है वह मरकर सुख पाता है। ३ सम्यक वाक ठीक भाषण-सठ वचन और बकवास का त्याग सम्यक वचन कह जाते हैं। भगवान् बुद्ध ने सम्यक वचन का कथन निषघात्मक शैली से दिया है यथा मिथ्यावचन से विरति ही सम्यक वचन है । १ अभिषम्मत्पसग्गहो पर हिन्दी प्रकाशिनी व्याख्या १ ७५८ । तुलनीय दोष निकाय ११६३ प ५५ मज्झिमनिकाय १०२६७ प ३२८ सुत्तनिपात ४ ७ ( पब्बज्जासुत्त )। २ नहि वेरेन वेरानि सम्मत्तीष कुदाचन । अवेरेन च सम्मन्ति एस धम्मो सनन्तनो ॥ धम्मपद गाया-सल्या ५ । ३ सुखकामानि भतानि यो दण्डेन विहिंसति । अत्तनो सुखमेसानो पेचसोन लभते ।। सुखकामानि भूतानि यो दण्डन सुखं न हिसा। अत्तनो सुखमेसानो पेच्च सो लभते सुख ॥ बही १३१ १३२ । ४ सहस्समपि चे वाचा अनत्यपदसहिता। एक मत्य पद सेय्यो य सुत्वा उपसम्मति ॥
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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