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________________ किरण १] श्री बा देवकुमार : जीवन और विचारधारा कुमार जी सुन्दर कविता भी करते थे। इनकी काव्य-रचना में खड़ी बोली का जो परिमार्जित स्वरूप मिलता है वह उस युग के लिए प्रशंसनीय है "सुवर्णगर्भा इस भारत को कहते थे सब लोग। भारतवासी हुए भिखारी चहुँदिक छाया शोक ।। हृदय आपका हिल जायेगा भारत दशा निहार . शोक शोक की धूम मची है चहुं दिक हाहाकार ॥ अचल कीर्ति का अपना स्वामी कीजे यहाँ प्रचार । स्वागत ! श्री युवराजमहोदय ! स्वागत राजकुमार ॥ ___ उपयुक्त पंक्तियाँ एक राष्ट्रीय विचारधारा को व्यक्त करने वाली मार्मिक अभिव्यक्ति से सिंचित हैं। कवि जन समाज के हृदय तक पहुँच कर उसकी अभिव्यक्ति में भी सफल हुश्रा है। करुणरस के सभी अंग इस छन्द में वर्तमान हैं। उपयुक्त विवरण से यह सिद्ध होता है कि कुमार जी जातीय गौरव से पूर्ण, धर्मधीर, उदार, विद्वान् , विचारवान, व्यावहारिक, राष्ट्रप्रेमी, लोकहितैषी, परिश्रमी, अध्ययनशील और सहृदय जनसेवक थे। उनके जीवन का एक निर्दिष्ट लदा था और उस लक्ष्य की पूर्ति के लिए उनके सामने था एक व्यवस्थित कार्यक्रम । क्षणिक आवेश में किए गए किसी कार्य को वे महत्व नहीं देते थे। उनका कहना था "प्रबन्ध कर्ताओं को कार्य के प्रारंभ में यह अवश्य देख लेना चाहिए कि हम इस कार्य को चिरस्थायी करते हैं न कि थोड़े दिन के लिए"। कुण्डलपुर के वार्षिक अधिवेशन में समाज के समक्ष प्रगति का कार्यक्रम उपस्थित कर जब ये लौटे तो तदनुसार कार्यक्षेत्र तैयार करने की योजना करने लगे। परन्तु 'मेरे मन कुछ और है विधि के मन कुछ और' नीति के अनुसार वहाँ से आते ही ये भयानक रोग से पीड़ित हो गये। साढ़े तीन मास तक ये रोगशय्या पर पड़े रहे। इस अवस्था में भी वे अपने धार्मिक नित्यकर्मों में कुछ भी अन्तर नहीं आने देते थे । घातक रोग की भीषणता से वे तनिक भी विचलित नहीं हुए। उनके समक्ष केवल जाति का भविष्य था और जिह्वा पर भगवद्नाम का जप । प्रसिद्धं जैन विद्वान् और साधु भी वर्णी नेमिसागर जी सदैव इनके पास रहकर आध्यात्मिक वातावरण के द्वारा इनकी प्रात्मा को तृप्त कर रहे थे। ज्यों ज्यों रोग बढ़ता गया संसार की ओर से विरक्ति होती गयी और आत्मचिन्तन में ये लीन रहने लगे। जैन-साहित्य की रक्षा और समाज सुधार का काम सुचारु रूप से चलता रहे, इस दृष्टि से इन्होंने लगभग दस हजार रुपये वार्षिक आय की एक लाख से अधिक की संपत्ति समाज को दान कर उसके प्रबन्ध के लिए एक ट्रस्ट का संगठन कर दिया । कुमार जी का यह अन्तिम उद्योग प्राज जैन-सिद्धान्त-भवन, पारा कन्या पाठशाला, स्यादाद महाविद्यालय
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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