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________________ भास्कर भाग २ नहीं सकता, यह भी गलत है। लाखों प्रादमी विलायत अमेरिका आदि में मांस व मदिरा त्यागी मौजूद हैं। देश में सांस्कृतिक जागरण की नवीन लहर तब तक उद्वेलित नहीं हो सकती,जब तक हम स्वयं अपनी संस्कृति को उसके शुद्धतम रूप में पहचानने योग्य नहीं बन जाते । सदियों की आत्मविस्मृति ने हमारे सांस्कृतिक व्यवहारों की उपादेयता पर इतना पर्दा डाल दिया है कि हम उसके महत्व को समझ ही नहीं पाते। समाज में प्रचलित त्योहारों और अनुष्ठानों की विकृति ने उनकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को धूमिल कर दिया है। उदाहरणार्थ दीपावली के विषय में कुमार जी की सूक्ष्म दृष्टि देखिये___"यह एक जैनियों का ही त्योहार है। कार्तिक वदी १५ के रोज प्रातःकाल श्री महावीर स्वामी का मोक्ष-कल्याणक हुआ और उसी रोज श्री गोतम स्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई है, उसी रोज इनकी गंधकुटी रची गई, १२ सभाएँ लगीं, जिनमें स्त्री-पुरुषों ने श्राकर श्री गौतम स्वामी अर्थात् गणेश (गणधर) की अंतरंग बहिरंग लक्ष्मी सहित पूजन की और धर्मोपदेश सुना"। परन्तु आज हमारे जैन-समाज में क्या हो रहा है ? "हमारे अज्ञानी स्त्री-पुरुषों ने वीतरागी श्री गणेश (गौतम स्वामी) के पूजन को त्याग कर मिथ्या प्रवृत्ति को यहाँ तक मान लिया है कि रात्रि को हटरी रखकर मिट्टी के गणेश-लक्ष्मी की पूजन करने से अपने कुटुम्ब व धन की वृद्धि समझते हैं । यह है आध्यात्मिक-संस्कृति को त्यागकर वस्तुवादी प्रवृत्ति की ओर आकर्षित होने का परिणाम कि हम अपने स्मरणीय लक्ष्य का वास्तविक स्वरूप भी भूल गये। संस्कृति का ह्रास इससे अधिक अब क्या हो सकता है ?" कुमारजी की दृष्टि केवल अपनी जाति के उत्थान तक ही सीमित नहीं रह सकती थी। वह तो राष्ट्रीय उत्थान का एक अंगमात्र है। राष्ट्र के प्रत्येक घटक का विकास राष्ट्रीय विकास का पूर्वाभास है। वे युग की प्रत्येक राष्ट्रीय भावधारा का समर्थन करने में सदैव तत्पर रहे है। स्वदेशी आन्दोलन इनके विचार के अनुकूल था। स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग में ये देश की समृद्धि का विकास देखते थे। "भावार्थ यह कि हमको महंगे, सस्ते, फैशन, गैरफैशन का खयाल छोड़कर अपने देश की की बनी चीजों का व्यवहार करना चाहिये, जिसमें यहाँ की कारीगरी चमक उठे और फिर हमें दुर्भिक्ष फंड खोलना न पड़े और न भारत की भारत की कहानी बयान करनी पड़े। भारतवासियों ने अभी तक इस पर ध्यान नहीं दिया है जिसका परिणाम है कि एक ओर तो हम अपने देश की बहुमूल्य उपज कच्चे माल के रूप में सस्ते दामों में विदेशों को भेज रहें और दूसरी ओर पेट बजा बजा कर दो मुडी चनों के लिए समस्त संसार में अपनी प्रति करुण कहानी के
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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