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________________ किरण १] श्री बा० देवकुमार : जीवन और विचारधारा नहीं समझ सकता । ऐसे देश की संस्कृति का नाश अनिवार्य है और इसका मून है उत्पादन से उदासीनता; स्पष्ट है कि कुमार जी ने अपने युग का कितना गंभीर अध्ययन किया था और उनके विचार युग से कितने भागे थे। जैन-संस्कृति इसी भोगवाद को दूर कर कर्मवाद की पक्षपाती है। इसीलिए इस संस्कृति के विकास की आवश्यकता है । कुमार जी के अनुमार अपनी संस्कृति की रक्षा का दूसरा उपाय है अपनी भाषा का पठनपाठन और उसके व्यवहार का प्रोत्साहन । वे न तो विदेशी शिक्षा के विरोधी थे और न पाश्चात्य कला-कौशल के विरुद्ध । उन्होंने भारतीय विद्वानों के लिए अंग्रेजो शिक्षा को श्रावश्यक माना, केवल इसलिए कि हम पाश्चात्य जगत से अपनी संस्कृति के अनुकूल नवीन भावनाओं को ग्रहण कर अधक व्यावहारिक बन सकें । यदि हम मिथ्या स्वाभिमान के वश में पड़कर दूसरों के गुणों को भी त्याज्य समझने लगेंगे तो हमारी संस्कृति एक संकुचित परिधि में रहकर नष्ट हो जायगी। वही संस्कृति उन्नत हो सकती है जो प्रत्येक देश, काल और अवस्था में ग्राह्य बन सके। शिक्षा का प्रसार होने से मानसिक विकास तो हो जायगा, परन्तु देश की निर्धनता को दूर करने का प्रधान उपाय शिल्प और कला की उन्नति है; जिससे अपने देश के प्राकृतिक उपादान और जनशक्ति के प्रयोग द्वारा हम विदेशों में निर्वासित अपनी लक्ष्मी का पुनः स्वागत कर सकेंगे। विदेशी वस्तुओं का प्रयोग हमारी उत्पादन शक्ति के लिए सबसे घातक अस्त्र हैं। स्वदेशी कल-करखानों की वृद्धि पर बल देते हुए वे कहते हैं "इसलिए जरूरी है कि हम काड़ा, दियासलाई, लैम, श्रादि कुल चीजों के इतने कारखाने खोलें कि जिसमें हमें विलायत से मंगाने की जरूरत न पड़े। इस कार्य के लिए--- "हमको इस देश में ऐसे कलों व कारखानों के काम के जानकार मनुष्य पैदा करने चाहिए"। और इसका सारा भार हमारे जैन समाज पर है जो अपनो व्यागर बुद्धि के लिए प्रसिद्ध हो चका है। विदेशों में जाकर इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करने वाले उनके ये शब्द है-- ___ "हमारा तो यह विश्वास है, जबतक हमारे भारत के व्यापारप्रिय मारवाड़ी महाशय के विद्यार्थी अमेरिका जाकर शिल्प-विद्या लाभ न करेंगे तबतक इस देश में कारखानों का बढ़ना कठिन है। इस सांस्कृतिक उत्थान के पुण्य कार्य में धर्म को बाधक मानना केवल अशता का परिचय देना है। कुमार जी कहते हैं-- __ "जैन शास्त्रों में राजाओं और सेठो के जो चरित्र हैं उनमें बहुतों ने समुद्र यात्रा की थी, ऐसे प्रमाण मिलते हैं। इसके अतिरिक्त अमेरिका व इंगलैण्ड में बिना मांस भक्षण किये कोई रह
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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