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________________ विविध विषय युवराज 'कच्छप वंश घट तिलक' कहे जाते हैं, अतः इस कच्छवाह वंशी राजा का सम्बन्ध ग्वालियर से रहा होगा। दूबकुण्ड का मन्दिर ७५० फीट लम्बा और ४०० फीट चौड़ा अण्डाकार घेरे में है। पूर्व की ओर प्रवेश द्वार है, द्वार के सामने पत्थर में कटा हुआ ५० वर्गफीट का एक तालाव है। यह मन्दिर बिल्कुल गिर गया है। इसके भीतर शिव-पार्वती के मन्दिर का ध्वंसावशेष भी है । वेर और बबूल के पेड़ों का जंगल इतना घना है कि समस्त मन्दिर में घुमना कठिन है। यहाँ की सभी मूर्तियाँ जैन हैं। एक मूर्ति पर चन्द्रप्रभु का नाम भी लिखा हुआ है। किम्बदन्ती है कि यहाँ प्राचीन काल में जैनियों का मेला भी लगता था। प्राचीन समय में पश्चिम के किसी राजा ने आक्रमण कर यहाँ के मन्दिर को तोड दिया था, तथा अनेक मूर्तियों को तालाब में डुबा दिया और सोनेचाँदी की मूत्तियों को वह ले गया था। मूर्तियों को डुबाने के कारण ही इस मन्दिर का नाम बकुण्ड अर्थात् दूबकुण्ड पड़ गया है। प्रसिद्धि है कि दोबाशाह और भीमाशाह नामक जैन श्रावकों ने इस मन्दिर को बनवाया था। किन्तु शिलालेख में बताया गया है कि मुनि विजयीत्ति के उपदेश से जैसवाल वंशी दाहड, कूकेक, सर्पट. देवधर और महीचन्द्र आदि चतुर श्रावकों ने मन्दिर का निर्माण कराया था जिसके पूजन, संरक्षण एवं जीर्णोद्धार आदि के लिये कच्छवाह राजा विक्रमसिंह ने भूमि दान भी दी थी। मराठा सरदार अमर सिंह ने धर्मान्ध होकर जैन संस्कृति के स्तम्भ इस मन्दिर को नस्त-नाबूद किया था। इस मन्दिर के सम्बन्ध में कहा गया है । The Jain temple of Dubkund is square enclosure of 81 feet each way; on each side there are ten rooms. The four corner rooms have doors opening outwards, but all the rest open inwards into a corridor, supported on square pillars. The entrance is on the east side, which has, therefore only seven Chapels, there being exactly eight chapels on each of the other three sides. Each chapel is 5 feet 8 inches square." अर्थात्-जैन मन्दिर ८१ फीट के घेरे में है, इसमें चारो ओर दस कमरे हैं, चारी कोनों के दरवाजे बाहर की ओर खुलते हैं, बाकी सभी दरवाजे भीतर वरामदे की ओर * खुलते हैं, जो कि चोकोर स्तम्भों के ऊपर स्थित है। पूर्व की तरफ सात वेदियाँ हैं और शेष सभी ओर आठ-आठ वेदियाँ हैं । प्रत्येक वेदी ५ फीट ८ इंच के वर्ग की है। इस मन्दिर में ३१ कमरे जो बाहर की ओर खुलते हैं, उनमें ३१ वेदियाँ और चार कमरे जो भीतर की ओर खुलते हैं, उनमें चार वेदियाँ हैं, इस प्रकार इस मन्दिर में कुल ३५ वेदियाँ हैं । वेदियों में चित्रकारी की गई है, दरवाजों पर भी सुन्दर कारीगरी
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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