SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 475
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ भाग ५ - तुलसी आदि के नाम से प्रसिद्ध हैं। पता नहीं सतसई के भीतर ये दोहे कैसे भागये ? मन्थ का प्रारम्भिक अंश इस प्रकार है : श्रीगुरनाथ प्रसाद तैं, होय मनोरथ सिद्ध । वर्षा तैं ज्यो तरुवेलिदल, फूलफलन की वृद्धि ॥ किये बृन्द प्रस्ताव को, दोहा सुगम बनाय । उक्त अर्थ दिष्टान्त करि, दिद करि दिये बताय ॥१॥ भाव सरल समझत सवै, भले लगै हिय आय। जैसे अवसर की कहो, वानी सुनत सुहाय ॥३॥ नीकीहु फीकी लगै, विन अवसर की बात । जैसे वरनत युद्ध में, रस सिंगार न सुहात ॥ इनकी यह सतसई विहारी के समान शृंगारिक कृति नहीं है. प्रत्युत नीति और वैराग्य से श्रोत-प्रोन है । इनकी यह रचना जनहिताय ही हुई है, मानव के चरित्र को विकसित करना ही इनका ध्येय रहा है । लौकिक ज्ञान समाज को प्रदान कर उसे व्यवहार कुशल और संयमित बनाने का प्रयत्न कवि का है। वास्तव में साहित्य क्षेत्र में नीति काव्यों का स्थान भी उतना ही ऊँचा और श्रेष्ठ है जितना श्रृंगारिक रचनाओं का। इस रचना में कवि ने सहृदय मानव समाज में भावों की सभी वृत्तियाँ जागृत कर करुणा, दया, क्षमा, सहानुभूति आदि कोमल वृत्तियों के विकास पर जोर दिया है। यह रचना अत्यन्त सरल, सरस और सद्य प्रभावोत्पदिनी है। दुधकुण्ड का ध्वंम जैन मन्दिर । ग्वालियर से दक्षिण-पश्चिम में दुबकुण्ड नामक पुराना जैन मन्दिर है। यह कुन् और चम्बल के बीच में ग्वालियर से ७६ मील दक्षिण-पश्चिम और शिवपुरी से ४४ मील उत्तर-पश्चिम में एक उपत्यका के ऊपर स्थित है। ग्वालियर की सड़क से ह८ मील दूर है। श्री बा० ज्वालाप्रसाद, जो सन् १८६६ में कप्तान मेलविल के साथ उस स्थान का अवलोकन करने गये थे, उन्होंने वहाँ उत्कीर्ण एक लेख को पढ़कर मन्दिर का निर्माण सं० ७४१ बताया; परन्तु कुछ पुरातत्त्वज्ञों ने उसका समय सं० १०८८ या ११४५ कहा है। क्योंकि अन्य उत्कीर्ण शिलालेखों से इस मत की पुष्टि हो जाती है। यह समय श्री विक्रमसिंह महाराजाधिराज के काल में पड़ता है। ग्वालियर के राजाओं की नामावली में इस नाम के राजा का उल्लेख नहीं है, किन्तु ग्वालियर के
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy