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________________ अनिन्दनीय का अभिनन्दन ! [ रचयिता - श्रीयुत् बा० वीरेन्द्र प्रसाद जैन अलीगंज ] संसृति के रङ्गमञ्च पर हैं, होते अभिनव श्रभिनय अनन्त; प्रतिपल अभिनय होता रहता, जन बनते खल तो कभी सन्त । प्रतिप्राणी अभिनय दिखलाता, अपने-अपने कर्मानुसार; उसकी स्मृति श्रवशेष, किन्तु, रह जाती, जो रहता उदार; अथवा निज-पर कल्याण हेतु, जो करता अभिनय श्राकर्षक; जो ज्ञान-सत्य को फैलाने, श्राता भूग्र बन श्रभिनायक; उसका जीवन- नाटक रहताप्रति मानव-मानस पर कित; वह मरने पर जीवित रहता, करता सबको श्राश्चर्य चकित | भारती या कि वह सरस्वती, करती उसका है यशोगान; इस भाँति युगों तक है करतीउसकी सुकीर्ति का वह बखान । इन युग-पुरुषों की श्रेणी में, अबतक अगणित हैं सुजन हुए; इन महा मानवों में ही तो, हैं विविध क्षेत्र के रश्न हुए ।
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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