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________________ किरण १ ] महान् कार्य किया । यह स्पष्ट हुए बिना नहीं रहता। उन्होंने अपने कलापूर्ण मंदिरों एवं चमत्कारी मूर्तियों और ग्रन्थों को बचाया ही नहीं, पर उस विकट समय में जबकि चारों ओर त्राहि-त्राहि मच रही थी, साहित्य एवं धर्म की बात जाने दीजिये लोगों की जान के लाले पड़ रहे थे, हजारों नई जैन जैनमूर्तियाँ बनवायीं, सैकड़ों मन्दिर बनवाये । हजारों ग्रन्थ निर्माण किये, नये लिखवाये, बड़े-बड़े तीर्थ यात्रा के संघ उन्हीं मुसलमान सम्राटों से फरमान प्राप्त कर निर्विघ्नतापूर्वक निकाले, अपने धार्मिक उत्सवों को बढ़ाया अर्थात् बड़ी भारी उन्नति की। इसकी तुलना में आज के (सब साधनों के होते हुए भी) जैन समाज की क्या हालत हो रही है ? कहने पर दो बूँद आँसू बहाये बिना नहीं रहा जाता । कहाँ हमारे पूर्वजों ने उस विकट परिस्थिति में धर्मका महान् उद्योग किया और कहाँ आज की निर्माल्य जैन जनता । आज सब प्रकार के साधन सुलभ है पर हम उनकी ओर कोई भी ध्यान नहीं देते । वास्तव में यह सर्वथा सत्य है कि धर्म पंगु है। उसके चलानेवाले ही उसकी उन्नति एवं अवनति हैं "न धर्मो धार्मिकैः बिना" । कतिपय प्राचीन पट्टे परवाने २७ जैनाचार्य जिनप्रभ सूरिजीने सम्राट् मुहमद तुगलक को जैन धर्म के प्रति आकर्षित कर कैसा धर्मोद्योग किया इस पर अपने शासन प्रभावक जिनप्रभ सूरि "निबन्ध" में प्रकाश डाल चुके हैं एवं सम्राट् कुतुबुद्दीन और सिकन्दरको चमत्कृत करनेवाले जिनचंद्रसूरि व जिनहंससूरिका वृत्तान्त भी अपने ग्रन्थ एवं लेखमें दे चुके हैं। सम्राट् अकबर पर हीरविजयसूरि व भानुचंद्र का प्रभाव प्रसिद्ध ही है एवं जिनचंद्रसूरि, जिनसिंहसूरि, पद्मसुन्दरादिके सम्बन्ध में भी प्रकाश डाला जा चुका है। वह प्रभाव कितना व्यापक एवं स्थायी हुआ। इसका परिचय इस लेख में प्रकाशित कतिपय पट्टे परवानों की नकलों से पाठकों को मिल जायगा । बादशाही प्रभाव के कारण राजा लोग भी आचार्यों की संतति को बहुत ही श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे । इसीलिये ये प्रकाशित सभी पट्टे परवाने जोधपुर के राजमान्य वैद्यवर उदमचंद्रजी गुरांसा के पास हैं उनके पास से नकल करके यहाँ प्रकाशित किये जा रहे हैं: इससे भूतकालीन जैन धर्मके गौरव एवं यतियों के प्रभावादिका अच्छा परिचय मिलता है । इस प्रकार के पचासों पट्टे परवाने अन्यत्र भी मिलेंगे उन्हें प्रकाश में लाने का नम्र अनुरोध है । अन्यथा वे भण्डारों में पड़े-पड़ सड़ जायँगे और दीमक के भक्ष्य बन जायँगे और जैन इतिहास के महत्वपूर्ण साधन नष्ट हो जायँगे । श्राशा है उनकी सुरक्षा एवं प्रकाशनकी ओर शीघ्र ध्यान दिया जायगा । छाप महाराजा विजय सिंहजो रो १ मुताबिक २ मुश्राफिक फरमान आलीसान तमाम हिन्दुस्थान के बादशाहों के हजरत अकबर बादशाह व जहाँगीर बादशाह, हजरत शाहजहाँ बादशाह, हजरत श्रालमगीर
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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