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________________ [ भाग १५ reummam राजसभाओं में बड़े-बड़े शास्त्रार्थ किये जाते थे। कहीं कहीं उनमें यह शर्त भी तय हो जाती थी कि जिस धर्मका आचार्य शास्त्रार्थ में निरुत्तर व परास्त हो जाय उसे उस राज्य में प्रवेश करने का अधिकार नहीं रहेगा; अतः राजाश्रय नष्ट होनेपर अन्य सम्प्रदायवालों को बड़ी विपत्ति का सामना करना पड़ता था। राज्याश्रय प्राप्त करना धर्म प्रचार का प्रमुख साधन बन चुका था। इस बात को ध्यान में रखकर जैनाचार्यों ने भी अनेक राजा महाराजाओं पर प्रभाव डालकर समय पर धर्मोन्नति की है। श्वे० प्राचार्य वप्पभट्टि सूरि के आम राजा एवं प्राचाय हेमचंद्र के कुमारमालको जैन धर्म का प्रतिबोध देकर शासन प्रभावना करने का वर्णन अनेक ग्रन्थों में विस्तार से किया है और वे शासन प्रभावक महापुरुष माने गये हैं। - भारतीय नरेशों की विलासिता एवं पारस्परिक फट के कारण बाहर से श्राकर मुसलमानों ने अपना शासन जमा लिया। पहले-पहल उनका आक्रमण अपना राज्य स्थापित करने के लिये नहीं हुआ। पर भारत धन धान्यादिमे बहुत समृद्ध था उसी पर उनकी आँखें लगी हुई थीं। किन्तु जब उन्होंने देखा कि यहीं-वालोंसे हमें सहायता मिल रही है तो वे कब चकनेवाले थे। मुसलमानी शासन से भारत को सबसे अधिक महत्व का यदि कोई नुकसान हुआ तो धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से हुआ। मतान्ध मुसलमानों ने अपने धर्म का प्रचार बड़े अन्याय एवं करता के साथ किया । भारतीय धर्मोक प्राचीन स्मारक कलापूर्ण मन्दिर-मूर्तियों आदिका जिस हृदयहीनता से विनाश किया गया वह कभी भी भूला नहीं जा सकता । स्थानीय जनता के साथ जिस बर्बरता-अमानुषिक ढंग से वे पेश आये उसका वर्णन पढ़ने से ही रोमांच होने लगता है। अतः कुशल जैनाचायोंने स्वधर्म रक्षा के लिये उन मुसलमान शासकों को प्रभावित करना उचित समझा। कुछ जैन व्यापारियों का मुसलमान ग्राहकों से अच्छा सम्बन्ध था कई जैन व्यक्ति उनके शासन संचालन में अधिकारी रूप में योग देते थे। उनकी मारफत मुसलमान सम्राटों एवं सूबेदार, वजीर आदि से मिलकर जैनाचार्य उन्हें प्रभावित करते और उनको अपने धर्मपर किये जानेवाले अत्याचारों से बचाते, अत्याचार का संशोधन करवाते, इसीसे विधर्मी शासकों के हाथ से जितनी क्षति अन्य हिन्दू समाज को हुई उसके शतांश में भी जैन धर्म को नहीं हई, यह उन्हीं दरदर्शी कुशल जैनाचार्यों की बुद्धिमत्ताका ही सुफल है। कलकत्ते में पुरातत्त्वविद मुनि जिन विजयजीने अपने एक भाषण में इसकी प्रशंसा बड़े ही गौरव के साथ की थी। उन्होंने कहा था कि गुजरात में आज ४०० वर्ष पुराना भी कोई हिन्दू मन्दिर सुरक्षित नहीं है तब जैन मन्दिर हजार आठसौ वर्षों के बहुत बड़ी संख्या में सुरक्षित हैं एवं प्राचीन ग्रन्थ भी ताड पत्रादिपर लिखित जैन भंडारों में १००० वर्षोंके सैकड़ों मिल जायँगे पर किसी भी जैनेतर संग्रहालय में एक भी प्राचीन प्रति नहीं मिलती। इस बात पर गंभीरता से विचार करने पर उस समय के जैन मुनियों एवं श्रावकों ने स्वधर्म रक्षा एवं उन्नति के लिये कितना
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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