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________________ प्रबंध में उनके छोटे भाई भानुवर्मा ने उनका खूब ही हाथ बटाया था । उनका पुत्र हरिवर्मा उनके पश्चात् शासनाधिकारी हुआ था। ___ सम्राट रविवर्मा भी अपने पिता मृगेशवर्मा के समान जैनधर्मानुयायी थे। हल्सी (बेलगाँव) से प्राप्त हुये उनके दानपत्र से उनकी जैनधर्म में दृढ़ श्रद्धा प्रकट होती है । उसमें लिखा है :___"महाराज रवि ने यह अनुशासन पत्र महानगर पालासिक में स्थापित किया कि श्रीजिनेन्द्र की प्रभावना के लिये उस ग्राम की श्रामदनी में से प्रति वर्ष कार्तिकी पूर्णिमा को श्री अष्टान्हिकोत्सव, जो लगातार आठ दिनों तक होता है, मनाया जाया करे; चातुर्मास के दिनों में माधुओं की वैयावृत्य की जाया करे; और विद्वज्जन इस महानता का उपभोग न्यायानुमोदित रूप में किया करें। विद्वतमंडल में श्री कुगारदत्त प्रधान हैं: जी अनेक शास्त्रों और सभापितों के पारगामी हैं. लोक में प्रख्यात हैं, सचरित्र के आगार हैं और जिनकी संप्रदाय सम्मान्य है। धर्मात्मा ग्रामवामियों और नागरिकों को निरन्तर जिनेन्द्र भगगन की पूजा करना चाहिये। जहाँ जिनेन्द्र की पूजा सदैव को जाती है वहाँ उस देश को अभिवृद्ध होता है, नगर प्राधि व्याधि के भय से मुक्त रहते हैं और शासक गण शक्तिशाली होते हैं। रविवर्मा स्वयं श्रावक के दैनिक कर्म-दान देना और जिनपूजा करना, करते थे और अपनी प्रजा को भी उनको पालने के लिये प्रोत्साहित करते थे, उनका भाई भानुवर्मा भी जिनेन्द्रभक्त था और निरन्तर दान दिया करता था। रविवर्मा सदाही धर्मोत्कर्ष का ध्यान रखते थे। होरमंग नामक स्थान से प्राप्त उनका दानपत्र भी उनकी महानता को बताता है। 'श्रालाजिकल सर्वे ऑव मैसूर' से हम उसे यहाँ सधन्यवाद उपस्थित करते हैं : कदम्ब नरेश रविवर्मा का कोरमंग दान-पत्र १ सूर्यांशुद्यति परिषिक्त पङ्कजानां शोभा यद्वहति सदास्य पादपद्मम् । सिद्धम् २ देवानाम्मकुटमणिप्रभाभिषिक्तं सर्वज्ञम्म जयति सर्वलोकनाथः ॥ ३ कीर्त्या दिगन्तरव्यापी रघुरासीन्नराधिपः काकुस्थतुल्यकाकुस्थो यवीयांस्तस्य भूपतिः । ४ तस्याभूतनयश्श्रीमान्शान्तिवा महीपतिः मृगेशस्तस्य तनयो मृगेश्वर पराक्रमः ॥
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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