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________________ भास्कर [भाग १७ वाराणस्यां नगर्या श्री शिखरबनवानस्तेन रचितं सीमन्धरादि रजनं भन्यजीवपाउमा शुभम् । पर शुभ संवत् १९१३ का मिती फागुन वदी ९ चन्द्र बार भट्टारक श्री १०८ महन्द्रकीर्तिजी गादी इन्दौर बजकरी मन्दिर गोराकुण्ड के पास पहुंच ज्यालयाला के पास पंडिन मनाजान लक्ष्मीचन्द्र हिजसुखजहमीचन्द्रस्तेनोपदेशात वाराणस्यां नगरयां श्रीशिखरचन्द्र प्रवाल सेन रखितं श्रीगुरु पाठकारापितम् ॥ जिनसहस्रनाम पूजा के अन्त को प्रशस्ति मुनिराज जिनंद कवीन्द्रनि काव्यमयी शुभ नाम बग्वाना। नाकर पाठ प्रताप सुनो भवि होइ तुम्हें मुख सिन्धु महाना ।। पुत्र कलत्र जु मित्र सुवित्त लहै तुमको मन मान प्रधाना । शुद्ध सुभाव प्रभाव मिले सिव जान हे गुनशान निशाना ।। मगमिर मुदि अष्टमी मुदिन कियो प्रारम्भ उदार । पौसमुदी अष्टमी सुबुध पुग्न भयो मुप्यार ।। संवत विक्रम भूपके जग गनि ग्रह समि जान । यह रनना पृग्न भई मंगलमुरमुख थान ॥ लिपिकार ने अपना परिचय निम्न प्रकार दिया है श्रीकाष्ठासंघे माथुरगच्छ पुष्करगयो लोहाचार्याम्नाये हमारपट्टे दिनासिंहासनाधीश्वर श्री १०४ महारको नम भट्टारक राजेन्द्र कोनिस्तापट्टे महारक मुनीन्द्रकीर्तिनिपिकतं श्री जिनमहसनाम जैनागम में विनत मिल का प्राध्यात्मरूप यो नो गणितशास्त्र का उपयोग लोक व्यवहार चलाने के लिए होता है, पर अध्यात्म-क्षेत्र में भी इस शास्त्र का व्यवहार प्राचीन काल से होता चला आ रहा है। मन को स्थिर करने के लिये गणित एक प्रधान माधन है। गणित को पेचेही गुन्थियों में उलझ कर मनस्थिर हो जाता है तथा एक निश्चित केन्द्रबिन्दु पर आश्रित होकर आत्मिक विकास में सहायक होता है। जैनाचार्यों ने धर्मशास्त्र में गणित का उपयोग मन को स्थिर करने के लिये किया है। निकम्मा मन प्रमाद करता है; जब तक यह किसी दायित्व पूर्ण कार्य में लगा रहता है, तबतक इसे व्यर्थ को अनावश्यक एवं न करने योग्य बातों के सोचने का अवसर ही नहीं मिलता है। पर जहाँ इसे दायित्व से छुटकारा मिला- स्वच्छन्द हुआ कि यह उन विषयों को सोचेगा, जिनका स्मरण मी कमी कार्य करते समय नहीं होता था। नया साधक जब ध्यान का अभ्यास
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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