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________________ किरण २ ] प्रजा तत्व था । प्रजा के साथ सहानुभूति और वात्सल्य का व्यवहार करता था । पालन अपना कर्त्तव्य समझता था, कलाकार और साहित्यकार उसके राज्य में फले-फूले थे । खूब कवि शिखरचन्द विक्रम की बीसवीं शती के हिन्दी जैन कवियों में कवि शिखर बन्द का नाम आदर के साथ लिया जा सकता है। यह प्रसिद्ध कवि वृन्दावन के लघु पुत्र थे। इनकी माता का नाम रुक्मणी था । यह गोयल गोत्री अग्रवाल थे। कवि वृन्दावन का जन्म शाहाबाद जिले के बारा नामक गाँव में सं० १८४८ में हुआ था। इनके पिता का नाम धर्मचन्द्र था। कवि वृन्दावन १२ वर्ष की अवस्था में अपने पिता के साथ बनारस में आगये थे। काशीनाथ आदि विद्वानों की सत्संगति का लाभ कवि को हुआ था। यह काशी में बाबर शहीद की गली में रहते थे। इन्होंने चौबीसी पाठ, तीसी चौबीस पूजा पाठ, छन्दशतक, प्रवचनसार टीका एवं फुटकर अनेक पद्य रचे थे । सम्पादकीय १४७ सुयोग्य कवि की सन्तान भी कवि ही थी। इनके तीन पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र अजित दास और लघुपुत्र शिखरचन्द कवि थे। विंशति विद्यमान जिनपूजा को प्रशस्ति से प्रतीत होता है कि यह ग्रन्थ कवि ने ग्वालियर के भट्टारक राजेन्द्रभूषण जी के उपदेश से सं० १६३२ में रचा था। ऐसा भी प्रतीत होता है कि इन्होंने भट्टारक महेन्द्रकीर्त्ति की गही में रहकर पं० मन्नालाल लक्ष्मीचन्द्र तथा दिलसुख लक्ष्मीचन्द्र से भी शिक्षा प्राप्त की थी। जैन शास्त्रों का पाण्डित्य इन्दौर और ग्वालियर के भट्टारकों के पास रहकर प्राप्त किया था। यही कारण है कि इनकी कविता भावनाओं के विश्लेषण के ख्याल से कवि वृन्दावन से भी ऊँचे दर्जे की है। श्री जैन सिद्धान्त भवन में इनकी दो पूजाएँ वर्तमान हैं - विंशति विद्यमान जिनपूजा और जिनसहस्रनाम पूजा । सहस्र नाम पूजा की रचना कवि ने विहारीलाल अग्रवाल के दि० जैन मन्दिर काशी में वि० सं० १६४२ पौषसुदी को की हैं। ग्रन्थ लिखना मार्गशीर्ष शुक्ला अष्टमी को शुरू किया था, एक महीने में यह विशाल पूजन ग्रन्थ लिखा गया है। इस प्रन्थ की पृष्ठ संख्या १०७ है 1 と विद्यमानविंशति जिनपूजा को प्रशस्ति में बताया है स्वस्ति श्री काष्ठासंघे भट्टारकललितकीर्त्तिपट्टस्य राजेन्द्रकीर्त्तिधाम्नाय साधुवृन्दावन पुत्र शिखरचन्द्रेण इदं विंशतिविद्यमानजिनपूजनं कृतम्: स्वज्ञानावरयीकर्मक्षयार्थ, भव्यजनकल्याणार्थम् ॥ दशकत श्री मूलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये गोपालपट्टे श्रीमहारक जिद्देवजिनेन्द्र भूषणस्तरपट्टे श्रीभट्टारकमहेन्द्र भूषयजिद्देवस्तत्पट्टे श्रीमहारकराजेन्द्र भूषण स्तेनोपदेशात्
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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