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________________ *U भास्कर [ भाग १७ चाणक्य ने जो कि भारी 'धातुबाद विशारद' " था अपने समय का, गुप्त रूप से स्वर्ण बनाने और एकत्रित करने में सदुरयोग किया था। जिस समय चाणक्य उक्त ग्राम में पहुंचा तो वहाँ उसने चन्द्रगुप्त को अपने बाल सखाओं (वाल बानों) के साथ खेनते पाया। खेल में चन्द्रगुप्त स्वयं राजा बना हुआ था। चाणक्य कुछ देर तक मुग्ध हुआ यह खेल देखता रहा और बानक चन्द्रगुप्त के अभिनय से बहुत प्रभावित हुआ । इन लड़के में उसने सबही राज्योचित लन्ना पाये, मानों वह एक बड़ा नरेश बनने के लिये ही जन्मा था। खेन में भी वह एक कुशल राजनीतिज्ञ होने का परिचय दे रहा था । चाणक्य ने उपकी और अधिक परीक्षा करने के लिये उससे ब्राह्मण बनकर दान की याचना की। बालक राजा ने बड़ी तारना से कहा 'बोलो क्या चाहने हो ? जो मांगोगे अभी मिलेगा।' चाणक्य ने कहा 'मैं गो दान चाहता हूं. किन्तु मुझे भय है कि तुम मेरी इच्छा पूरी न कर सकोगे । अन्य लोग उसका विरोध करेंगे।' चन्द्रगुप्त ने तुरन्त त्वेष के साथ उत्तर दिया 'यह आप क्या कहते हैं ? पृथ्वी वीरों के ही उपयोग के लिये हैं (वरगोज्जा पुहइ) ।' लड़के के इस उत्तर से उसके राज्योचिन गुर्गों का चाणक्य पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि वह उसके साथियों से उसका परिचय प्राप्त करने का प्रलोभन न रोक सका, बालकों ने उसे बताया कि चन्द्रगुप्त तो एक परिवाजक का पुत्र है। इस प्रकार यह जानकर कि चन्द्रगुप्त तो वही लड़का है जिनकी माता का दोहना उसने स्वयं परित्राजक के छद्मवेष में भ्रमण करते हुए पूरा किया था तो वह बड़ा प्रमन्न हुया और उसने चन्द्रगुप्त को राजा बनाने की उसी समय प्रतिज्ञा की। अतु तुरन्त उप बालक, चन्द्रगुप्त को अपने साथ लेकर चाणक्य उस स्थान से पलायन कर गया (मो ते समंपलाओ ) ' । अपने धातुविद्या के ज्ञान के प्रयोग से जो विपुन धन चाणक्य ने एकत्रित किया था उसकी सहायता से अब वह महाराज नन्द का उन्मूलन करने की तैयारियां करने में संलग्न विवेचन किया है। 'मुरा' के अस्तित्व की वे निरा काल कलित मानते हैं, और मोरिय नाम के क्षत्रिय कुल में ही चन्द्रगुप्त का उत्पन्न होना सिद्ध करते हैं । उनका नोट विशेष है। १ - धातु विद्या और खनिज रसायन शास्त्र में चाणक्य की पता का पता अर्थ शस्त्र (भा० २ ० १२, १३, १४) से भी चलता है । मनुष्य शरीर पर धातु रोग के विषय पर उसने एक ग्रंथ रचा प्रतीत होता है, जिसका उल्लेख अरवी हकीमज़चारिया ने किया है, किन्तु जी अप्राप्य है । २ - मोग्गलान के महावंश ( गाथा ११०-११२) में भी इस प्रसंग का उल्लेख है । ३ - बौद्ध अनुश्रुति (माथ० - ० १२२ ) के अनुसार चाणक्य चन्द्रन को शिज्ञ देने के लिये स्वस्थान अर्थात् तक्षशिला ले गया । इसमें सन्देह नहीं कि इसके उपरान्त के समय का चाणक्य ने क्षत्रिय कुमार चन्द्रगुप्त का राज्योचित सर्व प्रकार की शिक्षा दीक्षा देने में उपयोग किया ।
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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