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________________ किरण १] चन्द्रगुप्त और चाणक्य - - हुआ' । मुक्तहम्न से धन व्यय करते हुए उसने लोगों को अपनी मेना में भर्ती किया (लोगों मिलिओ), और फिर एकदम पाटलिपुत्र नगर का घेग डाल दिया। किन्तु महाराज नन्द की सैनिक शक्ति बहुत बढ़ी चही थी, उसने उल्टे चाणक्य की ही सेना को घेर लिया और संख्या एवं बल आदि में उप अपेक्षाकृत अत्यधिक हीन कोटि की सेना को छिन्नभिन्न करके भगा दिया। इस अकस्मात् एवं अप्रत्याशिन भाग्य परिवर्तन को देख चाणक्य और चन्द्रगुप्त भी अपनी तितर बितर सेना के साथ भागे । इस पर राजा ने अपने कुछ अश्वारोही सेना-नायकों को उन दोनों का पीछा करने और उनके महत्त्वाकांक्षी जीवन का अन्त कर देने के लिये रवाना किया। इन पीछा करनेवालों में से एक जब उनके निकट अाता दीख पड़ा तो चाणक्य ने तुरन्त चन्द्रगुप्त को तो कमलों से भरे एक समीपवर्ती सरोवर में छिपा दिया और स्वयं धोबी का वेष बनाकर किनारे पर बैठ गया । जब सवार ने वहाँ पहुंच कर चाणक्य से पूछा कि क्या उसने चन्द्रगुप्त को देखा है, तो धोबी वेषी चाणक्य ने उक्त सरोवर की ओर संकेत करते हुए कहा कि 'वह पानी में घुपा था १.--मोग्गलान तथा मत्थान कामिनी के अजात नामा लेखक के अनुसार चाणक्य ने चांदी के जाली सिक्के (कदापण या कापापण) बनाये थे और उन्हें विन्ध्य अटवी में किसी स्थल पर पृथ्वी के भीतर गाड़ रकबा थः । इस एकत्रित विपुल धनराशि का बाद को उसने नन्द साम्राज्य को विजय करने के हित एक भरी सेना के निर्माण करने में उपयोग किया था-(वंस०-पृ० १२१; महा० गा०६२) २--इस प्रसंग में मुन्वाध के इस कथन से परिशिष्ट पर्व के कथन में एक विशेष अन्तर है। परिशिष्ट पर्व (अ.८, २५७-२७८) के अनुसार नन्द ने चाणक्य और चन्द्रगुप्त को पकड़ लाने के लिये एक के बाद एक, दो अस्वारोही भेजे थे। जब मादी नामक प्रथम अश्वारोही समीप आता दिखाई दिया तो चाणका ने चन्द्रगुत को तो कमलों से आच्छादित एक निकटवर्ती सगेवर में छिप जाने को कहा और स्वयं एक मौनी तपस्वी का वेप बना कर किनारे पर बैठ गया । जब उस मार ने पास आकर चाणक्य से पूछा कि क्या उसने किसी नवयुवक को उस ओर से भागकर जाते हुए देखा है, तो चाणक्य ने बिना कुछ उत्तर दिये केवल हाथ से सरोवर की ओर संकेत कर दिया। इस संकेत से उनने जानलिया कि चन्द्रगुम कहाँ छिपा हुआ है। जब यह अपना खड्ग और कवच उतार कर पान में घुसने को तैयार हुआ तो चाणक्य ने झट तलवार उठाकर उसके दो टुकड़े कर डाले। चन्द्रगुप्त तत्काल पानी से बाहर आया और ये दोनों उस विफल प्रयत्न सैनिक का घोड़ा ले वहां से नौ दो ग्यारह हुए। भागते हुए मार्ग में चाणक्य ने चन्द्रगुप्त से पूछा 'जन्य मैने उस सवार से त लाव की ओर संकेत किया तो तुमने अपने मन में क्या सोचा था'। युवक ने बड़ी शान्ति से उत्तर दिया---'यही कि जो कुछ आप कर रहे हैं ठीक ही कर रहे हैं, क्योंकि आप स्वयं भलीभाति जानते हैं क्या उचित है क्या अनुचित ।' इस उत्तर से चाणक्य बहुत सन्तुष्ट हुए और उन्हें विश्वास हो गया कि राजा होने पर भी चन्द्रगुप्त उनके प्रति वैसा ही भक्त और आज्ञाकारी बना रहेगा। इतने में उन्हें राजा नन्द द्वारा उनका पीछा करने के लिये भेजा गया दूसरा सवार प्राता दिखाई पड़ा। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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