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________________ किरण १] राजर्षि बाबू देवकुमार ७७ संयमी का जीवन व्यतीत करूँगा। इस कार्य की पूर्ति के लिये आपने प्रचुर सम्पत्ति का व्यय किया। समग्र भारत में प्रचारकों और अन्वेषकों को भेजकर जैन शास्त्रों का संकलन कराया। अनेक शास्त्रागारों की सुन्दर व्यवस्था की तथा नष्ट होने से अनेक प्रन्थगारों को बचाया। आपने केवल मन्दिर और धर्मशालाओं का ही निर्माण नहीं कराया, प्रत्युत सरम्वती भवन जैसी सांस्कृतिक संस्थाएं भी स्थापित की। वणिक् वंश में जन्म लेने पर भी आपमें क्षत्रियोचित उदारता थी। अहिंसा धर्म के प्रचार के लिये आपने अपनी एक आसामी को दस बीघे जमीन पुरस्कार में दे दी थी। वृद्ध पुरुषों से मालूम हुआ कि उस व्यक्ति ने प्रारम्भ में अहिंसा धर्म का प्रचार किया, पर अन्त में उसने अहिंसा धर्म का प्रचार छोड़ दिया। परिणाम यह निकला कि वह व्यक्ति पागल होकर मृत्यु को प्राप्त हुआ। बाबू साहब ने इसी प्रकार ८० बीघा जमीन जैनधर्म के प्रचार के लिये और भी दान की थी। राजाओं के समान प्रसन्न होकर कई व्यक्तियों को आपने जागीरें भी दी थीं। आज भी जागीर पाने वालों के वंशज बाबू साहब का गुणगान कर रहे हैं। बाबू साहब उन दानियों या समाज सेवियों में नहीं थे, जो नाम कमाने के लिये दान देते हैं या अपने दान का ढिंढोरा पीटते हैं। आपके दान को कोई जानता भी नहीं है. आप चुप-चाप सहायता करने वाले निस्वार्थी, यश की आकांक्षा से दूर रहने वालों में थे। आपके पास ऐसी एक भी वस्तु नहीं थी, जो समाज के कल्या. णार्थ अदेय हो। आप अपना सर्वस्व समाज हिन के लिये समर्पित कर चुके थे। बाबू साहब की प्रतिभा सर्वतोमुखी थी, आप उन युगनिर्माताओं में से थे, जिन पर समाज और देश को गर्व होता है। आप जैन शासन और जैन संस्कृति के सतत जागरूक प्रहरी थे। समाज की आपने निस्सीम एवं निस्वार्थ सेवाएं की हैं, आपके इस महान ऋण से समाज कभी भी मुक्त नहीं हो सकता है। आपकी लोकोत्तर सेवाएँ धार्मिक और सामाजिक इतिहास में सर्वदा अमर रहेगीं। समाज के अजातशत्र होने के कारण बाबू साहब का प्रत्येक कार्य समाज प्रगति का कारण बना। श्राजका जैन समाज सेठ माणिकचन्द पानाचंद बम्बई तथा बाबू साहब के द्वारा निर्धारित रूपरेखा पर ही चल रहा है। सचमुच में भौतिक ऐश्वर्य के बीच रहकर अलिप्त रहने वाले राजर्षि संयमी बाबू देवकुमार जी जैनों के चक्रवर्ती भरत और वैष्णवों के महाराज जनक थे।
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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