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________________ भास्कर [भाग १ स्वरूप गवर्नर जरनल, कमिश्नर साहब आदि द्वारा प्रदत्त प्रमाण पत्र आज भी विद्यमान हैं। एक बार भी जो आपके सम्पर्क में आ जाता था, आपके सहृदय व्यवहार से सदा के लिये प्रभावित हो जाता था। छोटे-बड़े, गरीब-अमीर आदि सभी के प्रति मापका सहज स्नेह इतना आदरमय होता था कि वह आपका अपना बन जाता था। श्री सम्मेदशिखर की यात्रा करने वाले सैकड़ों यात्री प्रतिवर्ष आपके सम्पर्क में आते और सभी आपके व्यवहार, सम्मान प्रादि से सन्तुष्ट होकर आपकी प्रशंसा करते हुए लौटते। उस समय के यात्रियों में आज जो जीवित हैं, वे बाबू साहब के सम्बन्ध में कितनी ही अद्भुत बातें बतलाते हैं । गतवर्ष पर्युषण पर्व के अवसर पर जब मैं अजमेर गया था तो वहाँ पर जयपुर निवासी वयोवृद्ध श्री पं० जवाहर लाल जी शास्त्री ने मुझे बाबू साहब के विषय में कई विलक्षण बातें बतलायीं। आपने बाधू साहब के मार्दव और प्रार्जव गुण को अभिव्यंजित करने वाली निम्न घटना सुनाई। सन् १९०३ की बात है, बाबू साहब अपने सीमित परिवार तथा मुनीम, कर्मचारियों के साथ श्री सम्मेदशिखर की वंदना के लिये गये। आप वहाँ रात में लगभग १२ बजे पहुंचे। कोठी के दरवाजे पर साथ के कर्मचारियों ने कई आवाजें लगाई, पर दरवाजा न खुल सका । साथ के मुनीम जी ने जब बहुत हल्ला मचाया, तब दरवाजा खुला । उन दिनों बीस पन्थी कोठी के कार्यो का संचालन बाबू साहब के तत्वाधान में ही होता था तथा अध्यक्ष होने के कारण उनका कर्मचारियों पर विशेष प्रभाव था। जब मुनीम पन्नालाल जी को बाबू साहब के पाने का समाचार मिला तो वह बेचारे आँखें मलते हुए बाबू साहब के पास आये, तथा बाबू साहब से दरवाजा देर में खुलने के लिये क्षमा याचना करने लगे। बाबू साहब ने उलटे हाथ जोड़कर उनसे क्षमा मांगी और कहापुण्योदय से इस क्षेत्रके दर्शन होते हैं, मुझसे आपको अधिक कष्ट हुश्रा है। मेरे साथ के व्यक्तियों ने इस माघ की रात में आपको कष्ट दिया। मैंने तो बाहर रहने की सलाह दी, पर ये लोग माने नहीं। मैं बार-बार आपसे क्षमा याचना करता हूं। मैं यहाँ पुण्यार्जन के लिये आया हूं, किसी को कष्ट देने या स्वयं अशान्त होने के लिये नहीं। इस घटना से बाबू साहब के व्यक्तित्व का बहुत कुछ परिचय मिल जाता है। संसार भोगों से आप कितने उदासीन थे तथा जैन साहित्य, जैन संस्कृति और जैन समाज का दर्द आपके हृदय में कितना था, यह इतने से ही स्पष्ट है कि आपने मात्र २६ वर्ष की अवस्था में ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया था। आपने प्रतिज्ञा की थी कि मैं जबतक अन्धकाराच्छन्न जैन शास्त्रों, जैन शिलालेखों, ताम्र पत्रों आदि का संकलन कर समुचित व्यवस्था न करा दूंगा, अखण्ड ब्रह्मचारी रहूंगा। संसार के ऐश्वर्य का त्याग कर
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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