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________________ किरण १] राजर्षि बाबू देवकुमार जैनतीर्थों की सुव्यवस्था में आपने अपना अमूल्य सहयोग प्रदान किया। जैन समाज में व्याप्त अविद्या और अज्ञान के साम्राज्य को मिटाने में आपका अथक परिश्रम इतिहास में सर्वदा स्मरणीय रहेगा। आपने अपनी सम्पत्ति का अधिकांश भाग अज्ञान को दूर करने और ज्ञान के प्रसार करने में व्यय किया। अध्ययनशील अनेक छात्रों को छात्रवृत्तियाँ दी, उच्च अध्ययन के लिये पुरस्कार दिये एवं विद्या मन्दिरों की स्थापनाएँ कराई। दक्षिण भारत के प्रसिद्ध जैनतीर्थ श्रवणबेल्गोल के विद्यामन्दिर की स्थापना में आपका सहयोग प्रशंसनीय रहा था। श्री स्याद्वाद दि० जैन महाविद्यालय काशी के संस्थापकों में आपका नाम अग्रगण्य है। आपके मन्त्रित्व काल में ही इस ज्ञान मन्दिर ने स्थिरता प्राप्त की तथा उन्नति की ओर अग्रसर हुआ। आप की इस विद्या प्रचार की वृत्ति और प्रवृत्ति का जैन समाज को असाधारण लाभ मिला। बाबू साहब में ज्ञान प्रचार की बुभुक्षा इतनी प्रबल थी कि आप निरन्तर सार्व. जनिक ज्ञान-संस्थानों की सेवा और संरक्षण में संलग्न रहते थे। श्रारा नागरी प्रचारिणी सभा के आप अनन्यतम सहयोगी रहे थे, उसके वार्षिक अधिवेशन के अध्यक्ष पद से आपने जो मार्मिक भाषण दिया था, वह आज भी हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य के लिये नवीन है। आपने इस संस्था को आर्थिक सहयोग तो प्रदान किया ही, साथ ही अपना सक्रिय सहयोग देकर इस हिन्दी हितैषी संस्था को हिन्दी साहित्य की अपूर्व सेवा के लिये प्रोत्साहित किया। विहार-बंगाल जैन यंगमेनस् एसोसियेशन के अध्यक्ष रहकर आपने समाज की अपूर्व सेवा की। यह संस्था अपने युग की जीती-जागती जीवट संस्थानों में से एक थी। बाबू साहब तथा आपके कई मित्रों की अपूर्व कार्य क्षमता के कारण इस एसोसियेशन का प्रधान कार्यालय धारा में हो रहा । बाबू माहब समय-समय पर इसकी पुष्कल धन द्वारा भी सहायता करते रहे। जैन समाज में प्रापस के विरोध को मिटाने में इस संस्था ने बहुत बड़ा काम किया था। नवीन साहित्य के निर्माण के लिये इस कर्मठ एसोसियेशन से कई पुरस्कार घोषित किये गये। इस एसोसियेशन ने जैन समाज की कुरीतियों के निवारण और संगठन विधान का कार्य बड़े ही उत्तम ढंग से सम्पन्न किया। ___ बाबू साहब के व्यक्तित्व में सरलता, सादगी, सहृदयता, उदारता, विद्वत्ता, मिलनसारिता, परोपकारवृत्ति आदि विशिष्ट गुणों का अद्भुत मिश्रण था। आपके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ही तत्कालीन सरकार ने आपको ऑनरेरी मजिस्ट्रेट के पद पर नियुक्त किया था। इस पद का निर्वाह आपने जिस क्षमता से किया, उसके प्रमाण
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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