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बाबू छोटेलाल जैन स्मृति प्रथ . वीरवाणी में जयपुर के जैन दीवानों के दे और जो कुछ करना है वह यों ही रह जाय ? प्रतः सम्बन्ध में मैंने एक लेख माला चलाई थी। उन जितना जल्दी हो सके काम करना चाहिए । हल्की लेखों को पढ़ने की उनकी बड़ी विज्ञासा रहती थी। सी हंसी हंसते हुए पुनः कहा कि यह बीमारी एक दो मक में तत्सम्बन्धी लेख यदि नहीं रहते मेरी सहचरी है, मुझे अकेला नहीं छोडेगी-साथ तो फौरन बाबूजी का लम्बा चौडा पर प्रेरणास्पद लेकर ही जावेगी। सचमुच इस प्रकार का कर्मठ पत्र मा जाता कि लेख माला का क्रम क्यों टूट व्यक्ति होना बडा मुश्किल है । 'छोटे' शरीर 'छोटे' रहा है, क्यों नहीं जल्दी जल्दी सामग्री का संकलन नाम और कार्य उनके महान थे। किया जाकर प्रकाश में लाया जाता । उनके पत्रों
___उनका साहित्यिकों के प्रति भी उतना ही प्रेम ने सचमुच कई बार मुझे प्रेरणा और स्फूति था जितना अपने मात्मीयजनों के प्रति। ये साहित्य प्रदान की है।
और साहित्यिकों की सेवार्थ सदा तत्पर रहते थे । ___एक बार जब मैं किसी कार्यवश कलकत्ता गया किसी को पता तक नहीं कि साहित्य एवं अन्य उपयोगी तो मापसे भी मिला उस वक्त वे अस्वस्थ थे। कुशल मावश्यक कार्यों के लिए वे कितना मूकदान करते थे। मगल व स्वास्थ्य सम्बन्धी बातचीत मुश्किल से एक उनका सदा यही कहना था कि मेरा नाम प्रकाश में मिनट हुई होगी पर वह एक घन्टे का समय उनके लाने की प्रावश्यकता नहीं, काम होना चाहिये । प्रिय विषय पुरातत्त्व सम्बन्धी चर्चा में गया। रुम्ण अपने जयपूर प्रवास काल में स्थानीय कई संस्थानों शैय्या पर होते हुए भी वे स्वयं उठे, जो अलबम को मार्थिक सहायतायें उन्होंने दी थी । बंगाल के दक्षिण के चित्रों का उन्होंने तैयार कराया था दिखाने प्रख्यात कार्यकर्ता श्री सी० मार० दास के प्राप लगे और कहने लगे कि अमुक २ स्थानों पर जाकर सहयोगी रहे हैं। इस प्रकार लगभग प्राधी शताब्दी चित्र मावि लेना बाकी है जल्दी ही जाने का विचार तक जनता जनार्दन एवं साहित्य-पुरातत्त्व की जो कर रहा हूँ । मैंने कहा-बाबू साहब ! पहले सेवा मापने की है-वह हमारे लिए आदर्श है और स्वास्थ्य लाभ कीजिए, फिर जाने की सोचना। प्रेरणा देती है कि हम भी उनके पदचिन्हों पर चलें। उनने तत्काल उत्तर दिया कि यह रुग्ण शरीर ही यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि है। . मुझे प्रेरणा देता है । न जाने कब यह साथ छोड
जो व्यक्ति अपने कर्तव्य का परिपूर्ण शक्ति से निर्वाह करता है वह किसी भी देशभक्त से कम नहीं चाहे फिर वह धोबी, दर्जी अथवा मंगी ही क्यों न हो।
-श्री प्रकाश जी