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बाबू छोटेलाल जैन स्मृति प्रथ तो भी सत्यसमाज स्थापित होता, क्योंकि सन् २४ २-दान के लिये अनुरोध प्राग्रह प्रादि की में ही इस प्रकार का संकला अपनी डायरी में लिखा अपेक्षा नहीं करते थे। था परन्तु उसमें पांच वर्ष की और कदाचित दस ३-दान के लिये उन्हें अपने नगर आदि का वर्ष की देर होती और इस समय भेद से कौन कौन मोह नहीं था । जहाँ भी कहीं जनसेवा की दृष्टि से सी घटनाएं घटती कह नहीं सकता। हाँ ! इतनी उपयोगिता दिखसी कि उनने शक्ति भर दान दिया। बात तो निश्चित है कि सत्य साधना की तपस्या के
४-दान को वे उपकार नहीं समझते थे किन्तु लिये इतने वर्ष कम मिले होते । और इसका हिसाब
अधिक धन पैदा करने में जो थोड़ा बहुत पाप हो जब में प्राज देखता हूँ तब सत्य साधना की शीघ्रता
जाता है उसका प्रायश्चित समझते थे। के लिये बाबू छोटेलालजी ने जो प्रेरणा दी उसका
५-दान देने पर नाम प्रकट होना चाहिये, मूल्यांकन बहुत ऊंचा होता है ।
उनका चित्र निकलना चाहिये, उनकी तारीफ छपनी उस समय न उन्हें पता था, न स्पष्ट रूप में
चाहिये, इस प्रकार का कोई भाव वे प्रकट नहीं मुझे पता था कि इसका पर्यवमान सत्य समाज की
करते थे। स्थापना में होगा। पर उनकी प्रेरणा अमोघ साबित हुई । उनके जीवन के अनेक पुण्य कार्यों में यह ये विशेषताएं बहुत कम दानियों में पाई जाती भी एक महान पुण्य का कार्य था ।
हैं । सत्याधम को उनसे बीस हजार से भी अधिक पवित्रतम दान
रुपयों का दान प्राप्त हुआ है । और यह सब बिना
मांगे या बिना किसी प्रेरणा के हुमा है। दुर्भाग्य इस देश में लाखों दानी पडे हैं और वे लाखों
या सौभाग्य से मैं दान मांगने में बहुत कच्चा हूँ । रुपयों का दान करते हैं। परन्तु अधिकांश दान
साधारणत; सत्याश्रम के लिये कभी किसी से मांगा किसी न किसी तरह कलंकित रहते हैं। कोई दानी
नहीं हूँ। फिर भी समय समय पर बिना मांगे ही अपने नगर में ही दान करते है और दान की
बाबू छोटेलालजी से हजारों रुपया मिलता रहा है। हई सम्पति के पूर्ण संचालक बने रहकर उस दान के ठीक उपयोग में बाधक बने रहते हैं। कोई सिर्फ एक बार, सन् ४५ में, जब वे वर्धा प्राये तब मान प्रतिष्ठा खरीदने के लिये दान करते हैं, अर्थात् दम हजार रुपये का ड्राफ्ट मेरे नाम का लेते पाये। प्रतिष्ठा का मूल्य चुकाते है। कोई कोई तो ऐसे मैंने कहा-इतनी बड़ी रकम पाप लायेंगे इसकी तो होते हैं कि उनकी मान प्रतिष्ठा में कुछ कमी रह मैंने कल्पना भी नहीं की थी। बोले-पापके पत्रों की जाय तो दान की रकम रोक लेते हैं। कोई दान फीस भी तो नही है। की उपयोगिता का विचार ही नहीं करते जहाँ हो सकता है कि मेरे पत्रों में उन्हें कुछ प्रानन्द अधिक वाहवाही मिलती हो वहीं दान देते हैं। कोई मिला हो. मन को सान्त्वना मिली हो, पर हर दिन भिक्षुषों के अनुरोध से विवश होकर दान देते हैं। दस पांच पत्र घसीटने वाला में हजारों पत्र लिख इस प्रकार दान में नाना तरह की अपवित्रताएं हैं। चुका है, और उनमें भी अनेक पत्र वैसे महत्वपूर्ण परन्तु बाबू छोटलालजा क दान मय अपावत्रताए रहें होंगे परन्तु इस तरह मेरे पत्रों की फीस सुकाने कभी नहीं दिखाई दीं । उनके दान की ये विशेषताएँ वाली कितने हैं । यह सब बाबू छोटेलालजी की
असाधारण कृतज्ञता, उदारता, दानशीलता का १-जनहित की उपयोगिता देखकर ही वे दान । परिणाम हैं । सचमुच उनको दानशीलता पवित्रतम करते थे।
थी। जो उनसे कई गुणा दान करने वालों में भी