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बा० छोटेलाल जी और स्याद्वाद महाविद्यालय
कैलाशचन्द्र शास्त्री, वाराणसी
बार छोटेलालजी के पिता सेठ रामजीबनजी
• सरावगी विद्वानों के बड़े प्रेमी थे । उनका स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणसी पर असीम अनुराग था । मेरे विद्यार्थी जीवन काल में विद्यालय के छात्र संस्कृत की परीक्षा देने प्रति वर्ष कलकत्ता जाते थे । उस समय सेठजी सब छात्रों को अपने घर पर आमंत्रित करके प्रातिथ्य सत्कार करते और उन्हें कलकत्ता घूमने के लिये अपनी घोड़ा गाड़ी दे देते थे । जब उनका स्वर्गवास हुना तो उन्होंने पांच हजार रुपया स्याद्वाद महाविद्यालय को प्रदान किया ।
उनके स्वर्गवास के पश्चात् उनके सुपुत्रों का विशेषतः बाबू छोटेलालजी का जीवन के अंतिम क्षरण तक इस विद्यालय पर बही अनुराग रहा जैसा कि उनके स्वर्गीय पिताजी का था। उनेक द्वारा बांधी गई ५) मासिक की सहायता प्रति वर्ष बराबर आती है । इसे प्राते हुए प्राधी शताब्दी बीत चुकी है ।
जब इनके एक भाई सेठ गुलजारीलालजी बीमार हुए तो बाबू छोटेलालजी की प्रेरणा से उन्होंने स्पाद्वाद विद्यालय को २५०००) रुपया प्रदान किया था । उसी तरह दूसरे भाई सेठ दीनानाथजी ने बाबू छोटेलालजी की प्रेरणा से १५००० ) विद्यालय को प्रदान किया था। ये तो मुख्य दान हैं। समय समय पर हजार दो हजार का दान तो कितनी ही बार इस परिवार से मिलता रहा है । अतः स्याद्वाद महाविद्यालय स्वर्गीय सेठ रामजीवनदासजी और उनके कुटुम्ब का बड़ा ऋणी
है । दानवीर साहू शान्तिप्रसादजी के बाद विद्यालय को दान देने वालों में दूसरा नम्बर इसी परिवार का है ।
विद्यालय को कार्य करते हुए पचास वर्ष पूर्ण होने पर जब स्वर्णजयन्तीमहोत्सव मनाने का विचार मैंने बाबू छोटेलालजी पर प्रकट किया तो वे प्रसन्नता से तत्काल सहमत हो गये और कलकत्ता में मेरे साथ घर घर घूमकर उन्होंने लगभग पच्चीस हजार का चन्दा कराया। साहू शान्तिप्रसादजी, सेठ गजराजजी, सेठ मिश्रीलालजी काला प्रादि को प्रेरणा दी और सम्मेद शिखर पर पूज्य क्षुल्लक श्री गणेशप्रसादजी वर्गीजी की छत्र छाया में विद्यालय का स्वर्ण जयन्ती महोत्सव शान से हुआ तथा विद्यालय को एक लाख से भी अधिक रुपयों की सहायता प्राप्त हुई। उस महोत्सव के स्वागत मंत्री 'बाबू छोटेलालजी ही थे। स्वास्थ्य के प्रत्यन्त खराब व कमजोर होते हुए भी उन्होंने जो शीत ऋतु में रात दिन श्रम किया उसे में कैसे भूल सकता हूँ । हाड़ चाम के मू से कलेवर में ऐसी दृढ़ निश्चयो, विद्या और साहित्य की प्रेमी ग्रात्मा का प्रवास देखकर मस्तक श्रद्धा से नत हो जाता था। बाबू छोटेलालजो जैसा व्यक्तित्व दुर्लभ हैं । प्रशंसा प्राकांक्षा से सर्वथा दूर रहकर कार्य करना उनको विशेषता थी । कहावत है-गुण ना हिरानो गुuires हिरानो है। किन्तु बाबु छोटेलालजी सच्चे गुणग्राही थे। ऐसे आदरणीय व्यक्तित्व का सम्मान करने वाले स्वयं सम्मानित होते हैं । इसमें कोई प्रतिशयोक्ति नहीं है ।