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________________ उदारमना श्री बाबू छोटेलाल जी जैन १२-आप जैन संस्कृति की सुरक्षा एवं उत्थान १५-~-पाप जैन संस्कृति के पुरातत्व विभाग से के लिए हमेशा अप्रसर रहते थे। पाप पं० जुगल- प्रेम रखते थे, इसलिए पुरातन जैन सामग्री की किशोर की मुख्तार की लेखनी से प्रभावित हुए। खोज में विभिन्न स्थानों पर जाते रहते थे। प्राप उनके कार्यों के प्रकाशन प्रादि के लिए हजारों वहाँ से सामग्री भी एकत्रित करते थे । माप के पास रुपये दान में देते रहते थे। बीर सेवा मन्दिर को पुरातत्व को दुर्लभ सामग्री के अनेक बहुमूल्य चित्र सरसावा जैसी छोटी जगह से लाकर देहली जैसे थे जिनमें से कुछ को विस्तृत करा कर स्थानीय बेलगकेन्द्रीय स्थान में लाने का श्रेय प्राप ही को है। छिया उपवन के हाल में सर्व साधारण के प्रदर्शनार्थ प्रापने स्वयं व पौरों से हजारों रुपया दिला कर रख दिया गया है । प्राप की इच्छा पूरे हाल में इस संस्था को स्थायित्व प्रदान किया। मन्दिर का ऐसे चित्र लगाने की थी जिससे कि दर्शनार्थी जैन अपना भवन बना जोमाने वाली पीढ़ियों के लिए संस्कृति के प्राचीन गौरव से परिचित हो सकें। प्रेरणा स्रोत एवं जैन इतिहास व संस्कृति के विद्या- किन्तु खेद है कि अपनी अस्वस्थता के कारण प्रापके थियों के लिए महत्त्वपूर्ण केन्द्र सिद्ध होगा। आपने जीवन काल में उनकी यह इच्छा पूर्ण न हो सकी । इस संस्था की ओर से प्रकाशित "अनेकांत" पत्र को प्राप के पास २५००-३००० के लगभग बहुमूल्य महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया। पाप अपनी रुम्णावस्था पुस्तकें थीं । प्रापका पुरातत्व के अनेक विशेषज्ञों में भी इस पत्र के लिए चितित रहते थे एवं एवं अधिकारियों से घनिष्ट संपर्क था । पाप यथाइसे समय पर निकालने की प्रावश्यक व्यवस्था भी वसर जैन पुरातत्व पर लेख भी लिखते थे। आपने करते थे । लेखादि के लिए विद्वानों को प्रेरित कलकत्ता के जैन मन्दिरों की मूर्तियों और यंत्रों के करते थे। लेखों को भी पुस्तकाकार प्रकाशित कराया था। मापने जैन बिबियोलोजी का प्रथम भाग प्रकाशित १३-साहू शांतिप्रसाद जी ने साहित्यिक कराया था । पाप दूसरा भाग तैयार कर रहे थे जो विकास उन्नयन एवं सांस्कृतिक अनुसंधान तथा लगभग प्रायः पूर्ण हो चुका था किन्तु प्रापको प्रकाशन के उद्देश्य से सन् १९४४ में भारतीय ज्ञान- निरंतर बीमारी के कारण वह उनके जीवन काल में पीठ की स्थापना की । इसकी स्थापा को प्रेरणना प्रकाशित नहीं हो सका । प्राशा है वह अब प्रकामें भी बाबूजी का प्रमुख हाथ था । माप इसके ट्रस्टी शित हो सकेगी। एवं संचालन समिति के सदस्य थे । माप इसके जन प्राप का विद्वानों के प्रति अपार प्रेम-भाव प्रकाशनों के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण सुझाव देते रहते रहता था। माप युवकों के प्रति असीम स्नेह रखते थे। स्वर्गीय पं० नाथूराम जी प्रेमी के अनुरोध पर थे। उनके पथ प्रदर्शन एवं सहायता के लिए पाप पापने ही माणिकचन्द्र ग्रंथ माला का कार्य भार सब कुछ करने को तैयार रहते थे। इन पंक्तियों ज्ञानपीठ को स्वीकार करने की प्रेरणा दी थी। के लेखक ने गत १० वर्षों में उनसे जो असीम स्नेह १४-माप स्वामी सत्य भक्तजी एवं ब्र० शीतल हो पाया उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। प्रसादजी से बहत प्रभावित थे। भाप ने सत्य भक्त जी आप रायल एसियाटिक सोसाइटी के सम्मानित के प्राश्रम के संचालन एवं साहित्य प्रकाशन के लिए सदस्य थे । अाप इसके प्रतिनिधि के रूप में हिस्ट्री हजारों रुपया दान दिया था। माप शीतल प्रसाद कांग्रेस में भी कई बार गए थे। आप कु०चन्दाबाई जी जी की धर्मप्रचार-भावना एवं साहित्य-सृजन की के जैन-बाल-विधाम मारा से भी सम्बन्धित प्रथक वृत्ति से बहुत प्रभावित थे। आप उन्हें हर रहे हैं । आप वहां की व्यवस्था, शिक्षा मादि से बहुत प्रकार का सहयोग देते रहते थे। प्रभावित थे। किसी भी कन्या की पढ़ाई का जिक्र
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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