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________________ श्री बाबू छोटेलाल जी जैन उदारमना गये। इन बहुत ही जी, मामा जी प्रादि परिजन भी आ भाइयों की निस्वार्थ सेवा वृत्ति से वे प्रभावित हुए। अंतिम दिन उनके मामा के सुपुत्र भी मा गए। जब वे कुमार साहब से मिलने कमरे के भीतर जाने लगे तो बदबू के मारे उनका जी घबरा गया और वे उनके शरीर की भयंकर स्थिति देख कर बाहर ही रह गए तथा उनसे मिले भी नहीं । ऐसी परिस्थिति में भी बाबू जो उनकी प्रथक परिचर्या यथावत करने रहे । इसी प्रकार बिहार भूषण दयानिधि, रायबहादुर बाबू सखीचन्द्र जी को भी, हैजा होने पर, पांच दिन तक बाबू जी अनवरत सेवा करते रहे। इन्होंने उनकी विष्ठा, पेशाब आदि साफ करने में भी संकोच नहीं किया । इस प्रकार को परिचर्या बाबू जी केवल सम्बन्धी या परिचित की हो करते हों, ऐसा नहीं था। सन् १९१८ दिसम्बर में कलकत्ता में हुए इन्फल्यूएन्जा के समय बड़ा बाजार में गरीबों को ढूंढ २ कर बाबू जो उनकी चिकित्सा, पथ्य प्रादि की व्यवस्था करवाते थे। उन्होंने कलकता कारपोरेशन से लिखा पढ़ी कर एक चिकित्सक की व्यवस्था कराई। इस प्रकार रोगाक्रांत मानवों की सेवा में ग्राप एक माह तक लगे रहे । आप प्रारम्भ से ही सेठ पद्मराज जी रानी वालों के सम्पर्क में पाए। उनके पिता सेट फूलचन्द जी से आपके पिता जी का घनिष्ठ सम्बन्ध था, इसलिए आपका उनके यहाँ बराबर माना जाना बना रहता था। आप उनकी समाज सुधार एवं राजनैतिक विचारधारा से बहुत प्रभावित थे। सिद्धांत भवन धारा के बाबू करोटीचन्द जी कलकत्ता माते रहते थे। वे रानी वालों के यहां ठहरते थे अतः बाबू जी का भी उनसे परिचय हुमा जो आगे चलकर पनिष्ठता में परिवर्तित हो गया । ग्रापमें पुरातस्य एवं साहित्य के प्रति रुचि जागृत करते में श्री करोड़ो 2 चन्द जी का बहुत बड़ा हाथ था। यह रुचि भापके जीवन का मुख्य अंग बन गई । आप कलकत्ता जैन समाज की ही नहीं अपितु बाहर की अनेक सार्वजनिक संस्थाओं में भी सक्रिय भाग लेते रहे थे जिनमें से कुछ का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है ; १ - वे स्थानीय महावीर दि० जैन विद्यालय के २५-३० वर्ष तक मन्त्री रहे। आप अपने कार्यकाल में बच्चों की धार्मिक शिक्षा एवं संस्कारों पर विशेष जोर देते थे । जैन बच्चों के लिए धार्मिक विषय में सफल होना विषय में सफल होना अनिवार्य रखते थे, जिसका परिणाम हुआ कि उस काल के विद्यालयों के विद्यार्थियों में धार्मिक रुचि अधिक थी । २- अपने पिता श्री के ट्रस्टी होने के कारण आप भी प्रारम्भ हो से दिगम्बर जैन मन्दिरों की व्यवस्था आदि में सक्रिय भाग लेते रहे। जीवन के अन्त तक वे दिगम्बर जैन मन्दिरों एवं रथ यात्रा कमेटी के ट्रस्टी रहे। ३ - प्रापने जैन भवन के निर्माण में प्रमुख भाग लिया । ४- वे महिसा प्रचार समिति के संस्थापकों में से थे एवं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सक्रिय भाग लेते रहे । ५- कलकत्ता में सन् १९४४ में वीर शासन जयन्ती महोत्सव विशाल स्तर पर मनाया गया। उस समय वीर शासन संघ एवं विद्वत् परिषद् की स्थापना श्राप ही के प्रयत्नों से हुई थी । ६ - आप कलकत्ता में श्वेताम्बर व दिगम्बर समाजों की संयुक्त रूप से महावीर जयन्ती मनाने के पक्ष में प्रारम्भ से ही रहे। आप जैन समाज के सभी सम्प्रदायों में ऐक्य चाहते थे। जैसे प्राप दिगम्बर समाज में प्रिय एवं सम्मानित थे वैसे ही श्वेताम्बर समाज में भी थे। धाप जैन समाज की एकता की प्रतीक जैन सभा कलकता में कार्य करते रहे। भाप
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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