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________________ महत्त्व को स्पष्ट करना ही लेख का विषय है । लेख निष्पक्ष दृष्टि से लिखा गया है और पठनीय है। 'The Bold Jaina Conception of the Nature of Reality" के लेखक डा. भक्ती भट्टाचार्य एम.ए. पी. एच. डी. हैं । सत्य का स्थापन अनुभवों की भित्ति पर होता है। कोई भी बात केवल इसलिये सत्य नहीं है कि शास्त्रों में ऐसा लिखा है अथवा परम्परा से ऐसा चला पा रहा है अपितु, अनुभव से भी वह बात सत्य भासित होनी चाहिये और वह अनुभव तर्क की कसौटी पर खरा उतरना चाहिये । जैन दर्शन की इस विशेषता पर प्रकाश डालते हुए पदार्थ अनेक धर्मात्मक है. वह उत्पाद, व्यय और उभयात्मक है, परस्पर तीन और छह का विरोध रखने पाले धर्म भी एक ही पदार्थ में एक ही समय विभिन्न हष्टि कोणों से रह सकते हैं, जैन दर्शन के इस अनेकान्त वाद का प्रतिपादन लेखक ने बड़े ही सुन्दर और रुचिपूर्ण ढंग से इस लेख में किया है। जेन दर्शन के इस वाद जो कि केवल उसकी ही धरोहर है, को समझाने में लेख पूर्णतः सक्षम है। "The Basic Idea of God" लेखक- डा. हरीश भट्टाचार्य, एम. ए. बी. एल., पी. एच. डी. । विश्व के जितने भी वर्तमान और भूतकालिक धर्म हैं उनकी ईश्वर संबंधी मान्यता अलग अलग हैं। कोई एक ईश्वर मानता है कोई दो और कोई इससे भी अधिक, कोई ईश्वर को सृष्टि कर्ता बताता है तो कोई इसका खण्डन करता है। किन्तु वह सर्वशक्तिमान है, पूर्ण ज्ञानी है, सम्पूर्ण रूप से सुखी है और निर्भय है ईश्वर के इस स्वरूप पर सब एक मत हैं । लेखक ने ईश्वर संबंधी विभिन्न मान्यतानों का दिग्दर्शन कराते हए बताया है कि किस प्रकार जैन ईश्वर के सर्वमान्य स्वरूप से सहमत होते हुए भी उनसे इस विषय में असहमत हैं कि वह एक है, सृष्टि कर्ता है और सुख दुख का देने वाला है। जैन प्रत्येक प्रात्मा में ईश्वर होने की शक्ति मानता है। चार घातिया कर्मों के नष्ट होने पर उसमें वे चारों शक्तिया आ जाती हैं जो ईश्वरत्व के प्रावश्यक गुण हैं । इसे ही जैनी अनन्त चतुष्टय की प्राप्ति कहते हैं । 'Omniscience, a Fiction or a Fact'' लेखक-प्रोफेसर जी. आर. जैन । जैन मान्यताओं के अनुसार प्रदेश की अवगाहन। शक्ति और वैज्ञानिक प्रादम्स और एडिग्टन की मान्यताओं को एक रूपता, पदार्थ और उसकी शक्ति के सम्बन्ध में आईस्टीन के सिद्धान्त के साथ जैनों के बताए हुए पदार्थ के स्थूलत्व सूक्ष्मत्व प्रादि गुणों के साथ समता, पुद्गल की पूरयन्ति और गालयन्ति क्रिया का वर्तमान पदार्थ विज्ञान के साथ समत्व बताते हुए बताया है कि एटम बम पुद्गल की गालयन्ति क्रिया का और हाईड्रोजन बम पूरयन्ति क्रिया का उदाहरण है। परमारण की वैद्य तिक शक्ति के सम्बंध में भी जैनियों को शान था। जैनियों के परमाणु में माने हए स्निग्धत्व और रूझत्व गुण वर्तमान में वैज्ञानिकों द्वारा विद्य त में मानी हुई ऋण और धन शक्तियाँ ही हैं। विश्व की स्थिति, उसकी परिमिति के सम्बन्ध में जैन मान्यता और वर्तमान में वैज्ञानिक मान्यता की परिवर्तनशीलता बताते हुए प्रसिद्ध वैज्ञानिक दीपक वसु के मत का उल्लेख किया है जिसके अनुसार विज्ञान विश्व की स्थिति, निर्माण प्रादि के सम्बन्ध में उस ही परिणाम पर पहुंचेगा जिस पर कि जैन पहुंचे थे। जेनों के धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय के साथ वैज्ञानिकों के ईघर और फील्ड की तुलना करते हुए तर्कानुसार जैन
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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