SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८० बाबू छोटेलाल जैन स्मृति प्रन्थ भी कुमार का पक्का वैराग्य रंग ज्ञात कर माता- चातमसि घत भाजनपूर, ताल पीपाड़ बतीसवां, पिता ने आदेश दिया और चुलराज (चिन्तामणि) दो चातुर्मास तेतीसा-चौतीसवां उव्रण में, का दीक्षा महोत्सव प्रारम्भ किया। चतुर्विध संघ पंतीसवा रतनावती में किया। छत्तीसवाँ उज्जन, मिला । श्री धनराज जी साधु परिवार सहित सेतीसवां दिल्ली, अड़तीसवाँ नोरंगपुर, उनचालीसा पधारे। संवत् १७०४ मिती ज्येष्ट बदि ५ गुरूवार वेरीनगर, चालीसवाँ अलवर, इकचालीसवां सिलोरणे को श्री चिन्तामरिणजी ने गुरु श्री धनराज जी के पास । बयालीसवां परबतसर, तेंयालीसवां सोजत चातुर्मास सयम मार्ग स्वीकार किया। हुप्रा । संवत् १७४६ का चातुर्मास सोजत करके इनका प्रथम चातुर्मास जयतारण, दूसरा फिर परवतसर पाये । दोपचन्द ने गुरु श्री से वगड़ी, व चौथा रतलाम, पांचवा सुरत, श्री खेमकरणजी को गच्छभार सौंपने की प्रार्थना तीसरा छळा कृष्णगढ़, सातवां पुष्पावती, पाठवां की। निमंडल और श्रीसंघ एकत्र हुमा । रूपनगर सोझत, नवां विष्णुपुर, दसवां ग्यारहवां सूरत; और कृष्णगढ के संघ ने बहुत-सा अर्थ व्यय किया। बारहवां सुधदंती (सोजत), तेरहवां रखीनगर दीपचन्द ने तथा नगसिंह ने स्वधर्मी वात्सल्यचौदहवां हांसी. पन्द्रहवां दिल्ली सोलहवां जीमणवार किये । रूपनगर व परवतसर के संघ अर्गलपुर (आगरा) सतरहवां हरसोर में हुआ । ने मुनियों के संधाड़े में पहिरावणी की । इस प्रकार ये सब चौमासे गुरु श्री के साथ ही हुए। श्रीधन- बड़ी महिमा हुई और गच्छनायकों की जोड़ी राजजी धर्मोपदेशों द्वारा धर्म की महिमा बढ़ाते सूर्य-चन्द्र जैसी सुशोभित लगने लगी । संवत् १७४७ हुए मारवाड़ पाये । प्राउवा पधारने पर संघ ने बड़ा का ४४ वां चातुर्मास किसनगढ़ हुअा । फिर स्वागत किया। राव महेशदास ने यहीं पर (चिन्ता- रूपनगर, अहिपुर, धौषं दा, दिल्ली, कुलथपुरी में मणिजी) को पट्टधर स्थापित करने की प्रार्थना तीन प्रकबराबाद मे दो चातुर्मास करके ५४ वां की। उत्सव प्रारम्भ हुआ | राव महेशदास के दिल्ली में किया. ५५ वां वपरणीय करके मुहता नथमल ने पद महोत्सव किया। स्वधर्मी किसनगढ पधारे । संघ ने बड़े समारोह पूर्वक वात्सल्य हुए, राठौर कमधज रावजी की मर्ज थी स्वागत बिया और विनती करके गच्छराज को पौर चिन्तामणि जी की योग्यता ज्ञात कर वहीं रखा । पान चातुर्मास किये पांचवें चौमासे श्री धनराजजी ने संवत् १७२१ ज्येष्ठ वदि ५ को में पट्टघर को अपने पास रखा । फिर साठवां उन्हे स्वयं पट्ट पर स्थापित कर गच्छ भार चातुर्मास मुकंदगढ़ किया, धावको ने बड़ी सेवा संभलाया। की । संवत् १७६३ मिती काती बदि २ शनिवार इसके बाद मुनिमण्डल सहित विचरते हए के दिन श्री चिन्तामरिग ने संथारा किया । चौरासी धृतपुर आये । अठारहवां चौमासा करके उन्नीसवां लक्ष जीवायोनि से क्षामणापूर्वक सात प्रहर का रूपनगर, बोसयाँ जालले, इक सवा घृतपुर, बाई. अनशन पूर्ण कर तृतीया के दिन रविवार को गुरूश्री सवां बगही चातुर्मास हुमा । संवत् १७२२ (१६) निर्वाण प्राप्त हुए । संघ ने नवखण्डी मंदी को में रेया नगर पधारे । यहां प्रासोज मुदि ११ के पंचवर्णी ध्वजानों से सुसज्जित कर वाजिक प्रादि दिन गरू श्री का निर्वाण हा । श्री चितामणिजी के साथ पैसे उछालते हुए गुरू की अन्त्येष्ठि क्रिया न चौवीसवां चातुर्मास सादडी. पचीसवां किशनगढ़. सम्पन्न की । श्री चिन्तामरिणजी अपने नामके प्रनरूप छबीसवा नोहलाई, सत्तावीसवां रतनपुरी, अठाईसवां संघ की कामनाएं पूर्ण करें। व्रहानपुर, उन्नतीसवां मलकापूर, चातुर्मास किया। संवत् १७६३ काती बदि १३ पाशिसुतवार अभैराज व दोदराज ने खुब सेवा की। तीसवां के दिन श्री चिन्तामणिजी के पट्टधर श्री खेमकरणजी
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy