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________________ दो ऐतिहासिक रचनाएं भँवरलाल नाहटा रचनाओं के संरक्षण और निर्माण का बराबर बना रहा है। इसलिये विविध प्रकार की बहुत-सी ऐतिहासिक रचनायें प्राज भी प्राप्त हैं। पट्टावलियों, श्राचार्यों के रास, गीत, तीर्थं मालायें, ऐतिहासिक प्रबन्ध व काव्य प्रादि काफी मिलते हैं । उन सबके आधार से तथा प्रशस्तियों और मूर्ति लेखों के आधार से मध्यकालीन जैन इतिहास बड़े अच्छे रूप में लिखा जा सकता है । पर यह सामग्री बहुत ही विवरी हुई है । उन सबका संग्रह करना भी बहुत ही कठिन है । गत् ३०-४० वर्षों में जैन इतिहास की सामग्री का संग्रह एवं प्रकाशन होता रहा है पर ऐसी रचनाओं की खपत नहीं हो पाती इसलिये आगे काम रुक जाता है । श्वेताम्बर समाज ने कुछ वर्ष पहले तक इस दिशा में काफी काम किया और अब दिगम्बर समाज की ओर से भी अच्छा प्रयत्न हो रहा है । प्रनेक शास्त्र भण्डारों के सूची पत्र इधर कुछ वर्षों में तैयार हुये हैं और कुछ प्रकाशित भी हो चुके हैं। इससे श्वे०, दिग० और तर बहुसंख्यक प्रज्ञात रचनाओं की जानकारी प्रकाश में आई है । यद्यपि बहुत से शास्त्र भण्डार अभी तक प्रज्ञात अवस्था में पड़े है। जब तक उन सबकी सूचियां न बन जाय तब तक जैन साहित्य का महत्वपूर्ण रूप से प्रकाश में नहीं ला सकता । मध्यकालीन जैन विद्वानों का ध्यान ऐतिहासिक में। इनमें से कई रचनायें तो ऐसी भी होती हैं जो सर्वथा प्रज्ञात होने के साथ-साथ विशेष महत्व की हैं । कुछ रचनाओंों की तो केवल एक-एक प्रति बच पाई है। ऐसी ही दो श्वे० ऐतिहासिक रचनायें जयपुर के दि० शास्त्र भण्डार में प्राप्त एक गुटके में मिली हैं। उन रचनाओं का ऐतिहासिक सारांश प्रस्तुत लेख में प्रकाशित किया जा रहा है । ये दोनों रचनायें श्वे० गुजराती लोकागच्छ के प्राचार्यो संबंधी हैं और इनकी कोई दूसरी प्रति श्वेताम्बर भण्डार में अभी तक नहीं मिली है। इन दो प्राचार्यों के नाम क्रमशः 'चिन्तामणी' और 'खेमकरण' है । खेमकरण, चिन्तामणी के शिष्य और पट्टघट थे । दोनों का हो जन्म राजस्थान के श्राऊवा शहर में हुआ था | आचार्य 'चिन्तामणी' संबंधी रचना का नाम श्री पूज्य श्री चिन्तामणी जी जन्मोत्पत्ति स्वाध्याय रचना के अन्त में लिखा हुआ है । इसमें उनके जन्म से लेकर स्वर्गवास तक का वृत्तान्त पाया जाता है। दूसरी रचना का नाम "गणनायक श्री खेमकरण जी जन्मोत्पत्ति संथारा विधि" प्रन्त में लिखा गया है। इसमें खेमकरण के जन्म से स्वर्गवास तक का वृत्तान्त है । दोनों रचनानों * का ऐतिहासिक सारांश नीचे दिया जा रहा है । वैसे तो साधारणतया दि० शास्त्र भण्डारों में ferम्बर ग्रन्थ ही अधिक मिलते हैं इसी तरह श्वे ० भण्डारों में श्वेताम्बरों के। फिर भी कुछ ग्रन्थ व महत्वपूर्ण प्रतियां श्वेताम्बरों की दिगम्बर भण्डारों में मिल जाती है और दिगम्बरों की श्वे० भण्डारों (१) श्राऊपा शहर में श्रावक भीमासाह के पुत्र चीमासाह की पत्नी चतुरंग दे की कूक्षी में चिन्तामणि कुमार अवतरित हुए। संवत् १६८४ मिती पौष शुक्ला ७ गुरूवार को जन्म लेकर क्रमश: युवावस्था को प्राप्त हुए। श्री वसुराजजी की वाणी सुनकर वैराग्यवासित हो माता-पिता से दीक्षा लेने की धनुमति मांगी | चरित्र की दुर्द्धर्षता बताने पर * दोनों रचनात्रों की प्रतिनिधि महावीर जी तीर्थ कमेटी से वर्णित जैन साहित्य शोध संस्थान से प्राप्त हुई हैं इसके लिये संस्था संस्थान के कार्यकर्तानों का आभार मानता है ।
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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