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बसुदेव हिन्दी की राम कथा
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यह भूल से ही हुमा होगा, परन्तु अब तो सीता को नुभावता के प्रभाव से वह चक्र उसके वक्षस्थल पर वापिस लौटा दें। कुल का नाश मत कराइये । खर- धार की भोर से नहीं पड़ा, टेढा पड़ गया। लक्ष्मण दूषण और बालि के विद्या युक्त होते हुए भी राम ने वही चक्र रावण के वध के लिये फेंका । देवता ने उनका अनायास ही नापा कर दिया है। स्वामी द्वारा अधिष्ठित वह चक्र कुंडल और मुकुट सहित को तो सेवक की पत्नि की भी इच्छा नहीं करनी उसके मस्तक काटकर पुनः लक्ष्मण के पास पाया। चाहिये, फिर बलवान और अन्य पुरुष की परिन की माकाश में रहने वाले ऋषिवादित मौर भतवादित तो बात ही कैसी? राजाभों की तो इन्द्रिय निग्रह देवतामों ने पुष्प वृष्टि की और गगन मंडल में में ही जय होती है। मेधावी पुरुषों ने ४ प्रकार नाद किया कि भारत वर्ष में यह पाठवां वसुदेव की बुद्धि बतलाई है-मेधा, श्रुति, वितर्क, पौर उत्पन्न हुआ है। पशुभ कार्यों में हड़ संकल्प । भाप मेधावी पौर मति- सीता प्राप्ति व राम का राज्याभिषेक:मान हैं। अतः हर प्रकार से कार्य सिद्ध कर सकते
__पत्पश्चात् युद्ध समाप्ति पर विभीषण सीता को हैं। परन्तु प्रापका अभिनिवेश (दृढ़ संकल्प) तो
लाया और राम को सौंपी। राम की प्राज्ञा मिलते प्रकृत्य में है । इससे प्रापसे प्रार्थना करता हूँ। जो
ही विभीषण ने रावण का संस्कार किया। फिर कौर खाया जा सके, खाने के बाद पच जाय. और
राम-लक्ष्मण ने अरिजय नगर में विभीषण का पचने के बाद पथ्य बन जाय, वही खाना चाहिये।
और विद्याधर श्रेणी के नगर में सुग्रीव का अभिषेक इस पर विचार कर माप रामभार्या को वापिस ।
किया। फिर अपने परिवार सहित सुग्रीव, सीता लौटा दें। इससे परिजनों का भी कल्याण है।"
और राम को पुष्पक विमान में प्रयोध्या नगरी ले राम-रावण युद्धः
गया । प्रजाजन और मंत्रियों सहित राम का राजा इस प्रकार निवेदन करने पर भी जब रावण के रूप में अभिषेक किया। फिर अत्यन्त प्रभावशाली ने सुना नहीं तब विभीषण ४ मंत्रियों के साथ तथा सुग्रीव सहित राम ने प्रघं भारत को विजय राम के पास चला गया। सुग्रीव के परामर्श को किया । विभीषण राजा परिजय नगर में रहने मानकर राम ने विभीषण का सम्मान किया। विभीषण के परिवार में जो विधाघर थे वे सेना में विभीषण के वंश में विद्य तवेग नाम का राजा मिल गये । फिर राम और रावण के पक्ष वाले हुमा । उसकी रानी विद्युत्प्रभा थी । उससे दधि विधाधर और राक्षसों का युद्ध प्रारम्भ हुवा। मुख, दण्डवेग, और चण्डवेग नामक पुत्र मौर दिनों दिन राम का सैन्यवल बडने लगा। मुख्य मदनवेगा नाम की पुत्री हुई। उस मदनवेगा का योवानों के नष्ट होने पर विजयाकांक्षी रावण विवाह श्री कृष्ण के पिता वासुदेव के साथ हुमा । सब विद्यानों को नष्ट करने वाली ज्वालवती विद्या उसी का प्रसंग वर्णन करते हुए संघदास गणि ने की साधना करने लगा। रावण को विद्या साधना बीच में उपरोक्त राम कथा भी दे दी है इस कथा में लगा जानकर राम के योद्धा नगर में प्रविष्ट में राम के राज्याभिषेक एवं सीता के शेष जीवन होकर नगर का मावा करने लगे। इससे कब हुमा का कोई उस्लेख नहीं किया गया है। ग्रंथकार ने रावण कवच धारण करके सज्जित हो रथ में संक्षेप में जितनी कथा देनी प्रावश्यक समझी, बैठ कर निकला। भयंकर युद्ध करके वह लक्ष्मण उतनी ही वसुदेव हिन्डी में लिख दी। क्यों कि के साथ भिड़ गया। जब सब शस्त्र निष्फल हो यह कोई स्वतन्त्र राम चरित सम्बन्धी पंथ नहीं गये तब कुछ हो रावण ने लक्ष्मण का वध करने है इसलिये इसकी अधिक अपेक्षा भी नहीं की जा के लिये चक्र चलाया । परन्तु लक्ष्मण की महा- सकती।