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बाबू छोटेलाल जैन स्मृति प्रन्य
यह अबसर पाकर विश्वसनीय तापस का रूप लक्ष्मण ने कहा "हम इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न दशरथ धारण कर रावण सीता के पास प्राया। सीता के पुत्र राम-लक्ष्मण हैं, और पिता की प्राज्ञा से को देखकर उसके रूपातिशय से मुग्ध रावण ने वन में आये हैं । मृग के द्वारा हमें भ्रमित कराके बिना किसी बिघ्न की परवाह किये विलाप करती सीता का हरण कर लिया गया है। उसकी खोज हुई सीता का हरण कर लिया। उधर राम और में हम घूम रहे हैं। परन्तु भाप कौन हैं ? और लक्ष्मण ने वापिस लौटकर सीता को नहीं पाकर किस कारण वन में रहते हैं ?" हनुमान ने बतलाया दुखित हो उसकी खोज करनी प्रारंभ की। रावण 'हम विद्याधर हैं । हमारे स्वामी सुग्रीव हैं। अपने को मार्ग में जटायु विद्याधर ने रोक लिया था। बलवान भाई बालि से पराजित हुए वे हमारे साथ उसे हरा कर किष्किंधागिरि पर से होता हुआ वह जिनायतन का प्राश्रय लेकर रह रहे हैं। पापको लंका पहुंचा। सीता के लिए विलाप करते हुए उनके साथ मित्रता करनी चाहिए।" राम ने यह राम को लक्ष्मण ने कहा, 'प्रार्य ! स्त्री के लिये बात मान ली। भग्नि की साक्षी से वे मैत्री बंधन में शोक करना आपको शोभित नहीं होता। यदि बंध गये । बल की परीक्षा कर लेने के बाद सुग्रीव मरना चाहते हैं तो शत्र, की पराजय के लिये ने राम को बालि के वध के लिए नियुक्त किया। प्रयत्न क्यों नहीं करते।' मार्ग में जटायु ने खबर वे दोनों भाई समान रूप रंग वाले थे। उनमें विशेष दी कि 'रावण ने सीता का हरण किया है।" अंतर नहीं जानते हुए राम ने बाण छोड़ा । बालि फिर युद्ध करने वाले के लिये तो जय अथवा मरण ने सुग्रीव को पराजित किया। फिर दोनों में भेद है; विषाद पक्ष का अनुसरण करने वाले निरुत्साही जानने के लिए सुग्रीव को माला पहनाई गई। के लिये तो केवल मरण ही है, इस प्रकार राम और तब एक ही वारण से बालि को मारकर राम और लक्ष्मण दोनों ने विचार किया।
ने सुग्रीव को राजा बना दिया। सुग्रीव मैत्री, वालि बधः
तत्पश्चात सीता का वृत्तान्त जानने के लिये
हनुमान गये। वापिस प्राकर उन्होंने सीता की तत्पश्चात् राम और लक्ष्मण किष्किधागिरि
स्थिति बतलाई। तदनंतर राम की सूचना से पर पहुँचे, वहां बालि और सुग्रीव नामक दो विद्या
सुग्रीव ने भरत के पास विधाघर भेजे । भरत ने घर भाई परिवार सहित रहते थे। उनके बीच
चतुरंग सेना भेजी। सुग्रीव के सहित और विधाघरों स्त्री के कारण विरोध हो गया था। बालि द्वारा
द्वारा संचालित वह सेना समुद्र के किनारे पहुंची। पराजित सुग्रीव हनुमान और जांबवान इन दो मंत्रियों के साथ जिनालय का पाश्रय लेकर रह
वहां समुद्र के मध्य भाग की संधि में सेतु बांधा
गया। सेना लंका के समीप उतरी और शुभ रहा था । देव कुमार सदृश सुन्दर और हाथ में
मुहर्त में पड़ाव डाला गया। अपने परिवार और धनुष धारण किये हुए राम और लक्ष्मण को देख
सेना सहित रावण भी सेना सहित राम को नगण्य हनुमान ने भागते हुए सुग्रीव को कहा, 'बिना
समझ रहा था। कारण जाने मत भागो, पहले यह जानना चाहिये कि वे कौन हैं फिर जो उचित होगा करेगें।"
विभीषण द्वारा रावण को हित-शिक्षा
उसके बाद विभीषण ने विनयपूर्वक प्रणाम उसके बाद सौम्य रूप धारण करके हनुमान करके रावण से प्रार्थना की "राजन् ! हित की उनके पास गया । उसने युक्ति पूर्वक राम-लक्ष्मण बात यदि अप्रिय भी हो तो वह छोटे-बड़े सभी को से पूछा-"पाप कौन हैं ? और किस कारण वन में कह देनी चाहिये । राम की पनि सीता का हरण माये हैं वन के योग्य तो पाप हैं ही नहीं।" तब करके प्रापने अच्छा काम नहीं किया है । संभवतः