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बाबू छोटेलाल जैन स्मृति प्रन्ध बल्कि कभी २ तो एक ही तिथि में दो नक्षत्रों के पुष्पदंतकृत अपभ्रंश महापुराण में जो तिथि मक्षत्र ग्रंश और पूरा एक नक्षत्र इस तरह तीन नक्षत्र लिखे हैं वे भी सब उसरपुराण के अनुसार लिखे भुगतते मिलेंगे। इसलिये समीप के नक्षत्र का नाम हैं। यहां लिखी तिथियां भी कल्याणमाला से मिलती होने से उसे भी एक तरह से अन्य समान नक्षत्र के हैं। ये पुष्पदंत गुणभद्राचार्यसे करीब १७५ वर्ष अन्तर्गत ही गिनना चाचिये और एक ही नक्षत्र में बाद ही हुये हैं। इस तरह उत्तरपुराण, अपभ्रंश पांचों कल्याणक होने में इसे अपवाद कथन नहीं महापुराण और कल्याणमाला इन तीनों की तिपियें समझना चाहिये।
एक समान मिल जाने से तथा नक्षत्रों की संगति
उनके साथ लिखी तिथियों के साथ बैठ जाने से इस प्रकार उत्तरपुराण की सब तिथियों और उनके साथ लिखे हुये नक्षत्रों की संगति भी प्रच्छो तिथिविषयक गड़बड़ जो लंबे अरसे से हमारे यहां तरह से बैठ जाती है। यहां में यह भी सूचित किये
चली मा रही थी वह अब समाप्त हो गई है । प्रतः देता है कि कवि पुष्पदंतकृत अपभ्रंश महापुराण में पब हमको हमारी पूजापाठ की पुस्तकों की तिथियों
को इसी माफिक शुद्ध करके काम में लेनी चाहिये। भी कल्याणकों के तिथि नक्षत्र उत्तरपुराण के का अनुसार ही लिखे हैं। पं० प्राशापरजी के सामने
इसके अलावा मूल ग्रंथ में शुद्ध पाठ होने पर त्रिलोक प्रज्ञप्ति मौर हरिवंशपुराण के मौजूद होते
भी अनुवादकों ने कहीं कहीं गलत मास-तिथी नक्षत्र हुये भी उन्होंने स्वरचित कल्याणमाला में इन दोनों
लिख दिये हैं प्रतः सहुलियत के लिए पंचकल्याणक पन्यों की तिथियों की उपेक्षा करके एक उत्तरपुराण तिथियों का शव नकशा भी हम साथ में दिये देते की कल्याणकतिथियों को स्थान दिया है। इससे
हैं। इस विषय में एक विशेष ज्ञातव्य बात यह उत्तरपुराण की तिथियों की प्रामाणिकता पर गहरा है कि-महापुराण कार दक्षिणी होते हुए भी प्रकाश पड़ता है।
उन्होंने पंचकल्याणक तिथियां दक्षिणी पद्धति से इस सारे ऊहापोह का फलितार्थ यही है कि- नहीं देकर सभी उत्तरी पद्धति से ही दी हैं क्योंकि उत्तरपुराण की शुद्धतिथियाँ वेही हैं जो पं. सभी तीर्थकारों के पाचों कल्याणक उत्तर प्रान्त में भाशाधरजी ने कल्याणमाला में लिखी हैं । और कवि ही हुए हैं।
कोई भी दुखी मनुष्य पृणा के योग्य नहीं हो सकता चाहे वह कितना भी हीन क्यों न हो ?
समय का जादूगर कभी कभी पाश्चर्यजनक करिश्मे दिखाता है।
किसी निश्चित लक्ष्य को जीवन समर्पित कर देने वाले कर्मवीर को अपने जीवन में अनेकों बलिदान देने पड़ते हैं।
-बाबूजी की डायरी से