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बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रन्थ । है । प्रत दीक्षा से ६ दिन बाद पोस बुद २ को इन्हे! तिथि नहीं लिखी है । अब रही मुनिसुव्रत की जन्मकेवल ज्ञान हमा यह सिद्ध होता है देखो उत्तरपुरारण तिथि की बात सो ३,५..१८, २४ इन चार तीर्थपर्व ६६ फ्लोक ५१-५२ । इनका हिन्दी अनुवादकों के करों को छोड़कर बाकी के तीर्थंकरों की अपनी संगति पूर्वक ठीक अर्थ नहीं देकर-जन्म की तरह ही अपनी तप की जो तिथि है वही. जन्म की तिथि है अर्थात् मगसर सुदी ११ पर्थ कर दिया है किन्तु इस तरह मुनिसुव्रत की जो तप की तिथि वैशाख दोनों श्लोक युग्म हैं उनका अर्थ यह होना चाहिए युदो १० दी है वही जन्म तिथि हो जाती है इसलिए कि जन्म की तरह के ही दिनादि (मगसर सुदी ११), उसे प्रलग से नहीं दिया, हो।। में छापस्थ्य काल के ६ दिन बीतने पर अर्थात् पोप इस प्रकार प्राद्ध पाठों की वजह से जो उतर. वुदी २ को केवल ज्ञान हुमा।
पुराण की कुछ तिथियों में गड़बड़ पड़ी.हई थी वे रहा पार्श्वनाथ के ज्ञान कल्याणक की तिथि शुद्ध तो करली गई किन्तु फिर भी एक चीज का में अंतर सो यहां भी मुद्रित उत्तरपुराण के पर्व हल होना बाकी रह गया कि उत्तर पूराण की ७३ श्लोक १४४ में उल्लिखित चैत बुदी १४ की कुछ एक तिथियों की संगति उनके साथ में लिखे
नक्षत्रों से नहीं बैठती है। नीचे हम उसी पर मिति वाला "चतुर्दश्यां" पाठ अशुद्ध है इस तिथि
विवेचन करते है :के साथ विशाखा नक्षत्र का मेल बैठता नहीं है इस वास्ते पाठ भी "चतुर्य्या च" चाहिए ! चैतबुदी (१) प्ररनाथ के सब कल्याणक रेवती नक्षत्र ४ को विशाखा नक्षत्र की संगति भी भली प्रकार में हुए हैं किन्तु ज्ञानपीठ से प्रकाशित उत्तर पुराण बैठ जाती है। पार्श्वनाथ के सभी कल्याणक पर्व ६५ श्लोक २१-"मार्गशीर्षे सिते पक्षे पुष्यविशाखा नक्षत्र में हुए हैं अतः इनके ज्ञान कल्याणक योगे चतुर्दशी. अर्थात् प्ररनाथ का जन्म मगसर में भी जो विशाखा बताया है । वह ठीक है उसका सुदी १४ पुष्य नक्षत्र में लिखा है यहां तिथि के मेल चौथ के साथ ही बैठता है १४ के साथ नहीं साथ नक्षत्र का मेल बैठना नहीं है प्रतः यह पाठ प्रतः चतबुदी १४ ही ज्ञानकल्याणक की तिथि है। प्रशुद्ध है शुद्ध पाठ 'पुष्ययोगे' के स्थान में 'पूष
योगे' होना चाहिए तब उसका अर्थ रेवती नक्षत्र इस प्रकार कल्याण माला की तिथियों और
होता है क्योंकि रेवती' का स्वामी देव 'पूषा' माना उत्तर पुराण की तिथियों में जो मामूली फक था गया है। पुष्पदंत कृत अपभ्रस महापुराण भाग २ वह भी रफा होकर दोनों प्रथों को सब ही तिथियां पृ. ३२८ पर भी "पूस जोइ चउ दह मइ बासरि" बराबर बराबर मिल जाती हैं । मुद्रित उत्तर पाठ दिया है और टिप्पण में भी "पूस जोइ का पुराण में संभवनाथ की दीक्षा तिथि और मुनि- अर्थ "रेवती" नक्षत्र ही किया है। सूत्रत की जन्म तिथि का उल्लेख नहीं है ऐसा हस्तलिखित प्रतियों में उक्त तिथि सूचक पाठ छूट जाने
यहां यह बात ध्यान में रखने की है कि उत्तर से हुआ है। वर्ना गुण भद्र स्वामी ने जब सबकीही पुराण में सभी तीर्थंकरों के जन्म कल्याण के कल्याणक तिथियें दी हैं तो वे इन दो तिथियों को न नक्षत्र बताते हुए नक्षत्र का नाम न लिखकर उसके दें ऐसा कैसे हो सकता है। प्रथवा इसका कारण स्वामी देव का नाम ही लिखा गया है। यह हो कि संभवनाथ का मृगशिर नक्षत्र तो निश्चित (१) नमिनाथ के सब कल्याणक अश्विनी है ही और नियमतः यह नक्षत्र मगसर सुदी १५ नक्षत्र में हुए हैं किन्तु मुद्रित उत्तर पुराण में इनका को प्राता ही है प्रत यह तिथि बिना बताये स्वत: जन्म पर्व ६९ श्लोक ३० में 'पापाढे स्वाति योगे' ही सिद्ध हो जाती है इस खयाल से ग्रंथकारने यह प्रर्थात् प्राषाढ वद १० स्वाति नक्षत्र में लिखा हैं