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कर्म हीन, उद्देश्य हीन जीवन का दिवारम्भ होता है प्रान्ति में ! और शाम होती है अबसन ग्लानि में।
मनुष्य के मन का कोई भरोसा नहीं।
प्रायश्चित तो पाप के लिये होता है। जिसने पाप ही नहीं किया उसे प्रायश्चित की क्या आवश्यकता?
जंगल में रहने वाले पक्षी की अपेक्षा, पिंजड़े का पक्षी ही अधिक फड़फड़ाता है।
कुछ न कुछ दोष, कुछ न कुछ लज्जा की बात हर एक घर में है।
-बाबूजी की डायरी से