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बाबू बोटेलाल जैन स्मृति अन्य ग्रन्थ की रचना समाप्ति पर जब “कवि ने हुमा था' । महापुरुषों के चरित इन्हें बहुत ही अपना रामचरित समपित किया तब हरसी साह रुचिकर लगते थे प्रतः कवि को प्रेरित करके इन्होंने के हर्ष का पारावार न रहा। वे कवि को सम्मुख १२ सन्धियों एवं २४६ कड़वकों वाला राम चरित माया देख अपना मासन छोड़कर तुरन्त दौड़े तथा अथवा बल भद्र चरित तो लिखाया ही था, साथ विशिष्ट प्रासन लाकर सर्वप्रथम कवि को उस पर ही "सिरिवाल चरिउ"२ (श्रीपाल चरित) का बैठाया और सभी प्रकार के गौरवों से उसे सम्मा- प्रणयन भी उन्होंने अपने प्राश्रय में कराया था। इसमें नित किया। फिर सुन्दर-सुन्दर बेशकीमत वस्त्र, दस सन्धियाँ एवं २०२ कडवक हैं। राच-चरित कुण्डल, कंकरण, अलंकृत अंगूटी प्रादि पाभूषरणों से की प्रशस्ति के अनुसार उक्त हरसी: साहू की उसे प्रलकृत किया। पुनः उसने एक अत्यन्त सुन्दर दिवही एवं वोल्हा ही नाम की दो पलियां थीं । सजे हुए घोड़े पर बैठाकर बड़े ही उत्सव के उनका करमसिंह' नाम का एक पुत्र था जिसे साथ कवि को वापिस भेजा।"
राजरंगरसिंह से राज्यासम्मान प्राप्त था । वह ................ ....... मम्मि (२)। अपने पिता के समान ही साहित्यरसिक था। पंडिउ प्रासणि धावियउ तेरण।
महाकवि रइधू के एक अनन्य भक्त थे खेल्हा पुणु सम्माणिउ चहुगउरवेण ॥ साहू' जिनकी प्रेरणा से कवि ने 'हरिवंशपुराण' वरवच्छहि कुडल कंकणेहि ।
‘एवं' सम्मइजिरण चरिउ', (सन्मति जिन चरित) अंगुलियहि मुदिदय गिम्मलेहिं ।। की रचनाएं की थीं। 'हरिवंश पुराण' में १४ पुजिवि पाहरण हिं पृणु तुरंगि । सन्धियां एवं ३०२ कडवक हैं, तथा 'सम्मइ जिण पारोपिवि सज्जिउ चंचलंगि ।।
चरिउ' में दस सन्धियां एवं २४६ कडयक हैं। गउरिणय गिहि पंडिउ सच्छतेरए ।
उक्त खेल्हा योगिनीपुर (दिल्ली) की पश्चिमजिणगेहि गयउ मुमहुछवेण || दिशा में स्थित हिसारपिरोज ( सम्भवतः फीरोज
शाह द्वारा बसाए गये हिसार नामक नगर ) के रघु ने उक्त हरसी साहू की छह पोलियों का निवासी अग्रवाल वंश के गोयल गोत्र में उत्पन्न उल्लेख किया है। इसमें प्रादि पुरुष का नाम छगे श्री तोसउ साहू के ज्येष्ठ पुत्र थे।' स्वाध्याय साह था। इनकी चतुर्थ पीढ़ी में हरसी साह का जन्म प्रेमी होने के कारण वे सिद्धान्त एव प्रागम ग्रथो
१-सिरिवाल चरिउ १०। २४-२५. २--इस रचना का अपरनाम सिद्धचक्क माहय्य (सिद्धचक्र माहात्म्य) भी है । यह रचना अप्रकाशित
है और राजस्थान जैन शास्त्र भण्डार जयपुर में सुरक्षित है। ३-सिरिवाल. १०।२५ । ५. ४-विस्तृत जानकारी के लिये अनेकान्त वर्ष १५, किरण १ पृ. १६-२० (अप्रैल १९६२) में
प्रकाशित "महाकवि रइधू द्वारा उल्लिखित खेल्हा ब्रह्मचारी" नामक मेरा शोष-निबन्ध देखें। ५- इस रचना का अपरनाम मिपुराण भी है। प्रमुद्रित रूप में जैन सिद्धान्त भवन पारा में
सुरक्षित है। ६-इस रचना के भी अपरनाम वर्धमान चरित, वीरचरित एवं महावीर चरित हैं । रचना प्रकाशित
है और दिल्ली के जैन शास्त्र भण्डार में सुरक्षित हैं । ७-सम्मइ.१. ३१-३४.