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बाबू छोटेलास जैन स्मृति ग्रन्थ तक लम्बा (माप्रपदीन) चोलक पहने थे। संस्कृत धुर सामने से खुला हुमा एक कोट दिखाया गया है, टीकाकार ने चोलक का प्रर्ष कूर्पास किया है।५ जिसकी पहचान चोलक से की जा सकती है। किन्तु देखना यह है कि टीकाकार इन वस्त्रों के मथुरा से प्राप्त हुई सूर्य की कई मूर्तियों में भी इसी वास्तविक स्वरूप को स्पष्ट किये बिना ही कुछ भी प्रकार के खुले गले का ऊपरी पहरावा पाया जाता अर्थ कर देता है। ऊपर कंचुक के लिए कूर्पासक है। बष्टन की मूर्ति का भी ऊपरी लम्बा वेश चोलक कहा है यहां चोलक के लिए। वास्तव में ये सभी ही ज्ञात होता है । इसका गला सामने से तिकोना वस्त्र अलग-अलग तरह के थे।
खुला है । कनिष्क और चष्टन के घोलकों में अन्तर चोलक के विषय में डा. अग्रवाल ने निम्न
है। ये दोनों दो प्रकार के हैं। कनिष्क का धुराधुर प्रकार जानकारी दी है
बीच में खुलने वाला है और चष्टन का दुपरता
जिसका ऊपर का परत बायीं तरफ से खुलता है चोलक एक प्रकार का बह कोट था, जो कंबुक
तथा बीच में गले के पास तिकोना भाग खुला दिखाई या अन्य सभी प्रकार के वस्त्रों के ऊपर पहना जाता
देता है। कनिष्क की शैली का बोलक मथुरा संग्रथा। यह एक सम्मान्त या भादर-सूचक बस्त्र समझा जाता था। उत्तर-पश्चिम भारत में सर्वत्र मोशे के
हालय की टी०४६ संज्ञक मूर्ति में और भी स्पष्ट लिए इस वेश का रिवाज लोक में अभी भी है. जिसे चोला कहते हैं । चोला ढीला-ढाला गुल्फों तक सम्बा मध्य एशिया से लगभग सातवीं शती का एक खुले गले का पहनावा है, जो सब वस्त्रों से ऊपर ऐसा ही पुरुष पोलक प्राप्त हया है, जिसका गला पहना जाता है ।
तिकोना खुला है। कस्टन शैली के चोलक का मध्य एशिया से पाने वाले शक लोग इस बेश एक सुन्दर नमूना लाप मरुभूमि से प्राप्त मृण्मय को भारत में लाये होंगे और उनके द्वारा प्रचारित मूर्ति के चोलक में उपलब्ध है। यह उसरी वाईवंश होकर यह भारतीय वेशभूषा में समा गया।७ (३८६-५२५) के समय का है।०१
मथुरा संग्रहालय में जो कनिष्क की मूर्ति है, बाणभट्ट ने राजाओं के वेश-भूषा में चीन-चोलक उसमें नीचे लम्बा कंचुक और ऊपर सामने से धुरा- का उल्लेख किया है।०२
६३. परिजनोपनीत उपविश्यासने वारबारणमवतायं, वही, पृ० २१६ १४. प्र.प्रपदीनचोलकस्खलितगतिवलक्ष्य, यश०सं०पू०. पृ० ४६६ १५. चौलकः कूर्पासकः, वही, सं० टी० । १६. अग्रवाल-हर्षचरितः एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १५२ ६७. अग्रवाल-वही, पृ० १५१
मोतीचन्द्र-भारतीय वेशभूषा, पृ० १६१ ६८. मथुरा म्युजियम हैंडबुक, चित्र ४, उद्धत, अग्रवाल-हर्षचरितः एक सांस्कृतिक अध्ययन,
पृ० १५१ ६६. अग्रवाल-वही, पृ० १५२ १००. वायवी सिलवान-इन्वेस्टिगंशन प्राफ सिल्क फाम एडसन गौल एण्ड लापनार (स्टाकहोम, १६४६)
प्ले०८-ए । उद्धत, अग्रवाल-वही, पृ. १५२ १०१. वायवी सिलवान-वही, पृ.८३, चित्र सं० ३२ । उद्धतं, अग्रवाल-वही, पृ० १५२ १०२. चाचितचीनचौलकैः, हर्षचरित, पृ० २०६