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हीन और साधु पर कभी शस्त्र नहीं उठाना चाहिए ।
(४) प्रारम्भी हिंसा - घर गृहस्थी के चलाने में, सफाई करने में, मकान ग्रादि वनवाने में जो हिंसा होती है उसे प्रारम्भी हिंसा कहते हैं और गृहस्थ इस हिंसा का भी त्यागी नहीं होता ।
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हिंसा के इन भेदों को भली भांति समझ लेना चाहिए अन्यथा गलत धारणात्रों में पड़ कर ग्रामी पथ भ्रष्ट हो जाता है । गृहस्थ वीर, तेजस्वी और शूर वीर होता है । वास्तव में तो हिंसक वह है जो अन्याय को चुपचाप सह लेता है क्यों कि उस से अन्याय फैलता है और अहिंसा बढ़ती है । जब कोई शान में अन्धा हो कर दूसरों को सताता है, शिकार खेलता है, देवी-देवताओं के नाम पर प्राणियों का वध करता है तब वह हिंसक कहलाता है ।
सच्चा अहिंसक ही वीर, उदार और कर्तव्य पालन करने वाला होता है । वही स्वयं सुखी रह कर दूसरों की भलाई करने में सफल होता है ।