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वचपन से ही गांधी जी के मन में सब धर्मों के प्रति सद्भावना जाग उठी थी ।
जब गांधी जी विलायत पढ़ने गए तो तो बहुत से लोगों की तरह-तरह की भुलावे की बातों में पड़ कर उन्हों ने कभी मांसाहार करना स्वीकार नहीं किया यद्यपि इस कारण भोजन के लिए उन्हें बड़ी-बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। बाद में गांधी जी शाकाहारियों की एक संस्था के सदस्य वन गए और उन्हों ने अपने भोजन संबंधी प्रयोग प्रारम्भ कर दिए । उन्हों ने घर से मंगाई मिठाई व मसाले खाने बन्द कर दिए और चाय तथा काफी भी छोड़ दी । कोको तथा उबली हुई सब्जी पर ही गुजर करने लगे । इन प्रयोगों से गांधी जी ने समझ लिया कि स्वाद का असली स्थान जीभ नहीं बल्कि मन है ।
धर्म पर ग्रास्था ने ही गांधी जी को लालच में पड़ने से बचाया और गलत राह पर जाने से रोका ।