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अहिंसा
जिस तरह हम सुख से जीना चाहते हैं दुख से बचना चाहते हैं
और
उसी तरह संसार के सभी छोटे-बड़े जीव दुख से बच कर सुख पूर्वक जीना चाहते हैं । हम सभी एक दूसरे को किसी तरह का
कष्ट न दे कर सुख पहुंचाने का ही प्रयत्न करें - इसी पवित्र भावना का नाम हिंसा है। भगवान महावीर के शब्दों में "जीनो और जीने दो ।"
हिंसा किसी को जान से मारने मात्र से ही नहीं होती परन्तु हमारे जिस काम से या बात से किसी दूसरे को दुख पहुंचे वह भी हिंसा ही है | समझ लो
कि जिस बात से हमें दुख होता है वह काम हम किसी दूसरे के लिए कदापि न करें । जैसे हमें कोई गाली
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