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"वस्तु सहायो धम्मों"
वस्तु का स्वभाव ही उसका धर्म है। जैसे प्राग का स्वभाव जलाना है और वही उस का धर्म है. या पानी धम क्या है ? का स्वभाव शीतल है तो वही उस का धर्म है। इसी तरह प्रात्मा का स्वभाव ज्ञान है और वही उस का धर्म है । धर्म वही है जो आदमी को ठीक रास्ते पर ले जाए और उस को सुख और शान्ति पहंचाने में सहायता दे।
धर्म के तीन अंग हैं : (१) सम्यक दर्शन अर्थात् ठीक बातों पर विश्वास
और भक्ति । सम्यक ज्ञान अर्थात् किसी भी चीज का ठीक और सही ज्ञान । सम्यक चरित्र यानि सम्यक दर्शन और सम्यक ज्ञान से जानी गई ठीक बातों पर चलना या उन के अनुसार अपने चरित्र को बनाना।