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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ४० पहिला अन विकथा, सो भी अपना पर्यन्त भेद अवनिपालकथा, ताकी प्राप्त भया; असे होते सोलह आलाप भए ।
बहुरि ए दोऊ अक्ष विकथा अर कपाय वाहुडि करि अपने प्रथम स्थान की प्राप्त भए, तव तीसरा प्रमाद का अक्ष अपना प्रथम स्थान छोडि, दूसरा स्थान की प्राप्त हो है । पर इस ही अनुक्रम करि प्रथम अर द्वितीय अक्ष का क्रम ते अपने पर्यन्त भेद ताई जानना । वहुरि बाहुडना तिनकरि तीसरा प्रमाद का अक्ष इंद्रिय, सो अपना तीसरा आदि स्थान को प्राप्त होइ, जैसा जानना ।
भावार्थ - विकथा अर कपाय अक्ष वाडि अपना प्रथम स्थान स्त्रीकथा अर क्रोध कौं प्राप्त होइ, तब इंद्रिय अक्ष विपै पूर्व सोलह आलापनि विपै पहिला भेद स्पर्णन इंद्रिय था, सो तहां रसना इंद्रिय होइ, तहां पूर्वोक्त प्रकार अपना-अपना पर्यत भेद ताई जाय, तव रसना इंद्रिय विप सोलह पालाप होइ । वहुरि तैसे ही ते दोऊ अन वाहुडि अपने प्रथम स्थान को प्राप्त होइ, तव इंद्रिय अक्ष अपना तीसरा भेद ब्राण इंद्रिय कौं प्राप्त होइ, या विष पूर्वोक्त प्रकार सोलह आलाप होइ ।
वहुरि इस ही क्रमकरि सोलह-सोलह आलाप चक्षु, श्रोत्र इंद्रिय विष भए, सर्व प्रमाद के अन अपने पर्यन्त भेद को प्राप्त होइ तिष्ठं हैं। यह अनसंचार का अनुक्रम नीत्र के अन तें लगाय, परि के अक्ष पर्यन्त विचार करि प्रवर्तावना । बहुरि अन की सहनानी हंसपद है, ताका आकार (x) असा जानना ।
आगे प्रथम प्रस्तार की अपेक्षा अक्षपरिवर्तन कहै हैं -
तदियक्खो अंतगदो, आदिगद्दे संकमेदि बिदियक्खो। दोण्णिवि गंतूणतं, आदिगदे संकमेदि पढमक्खो ॥४०॥
तृतीयाक्षः अंतगतः, आदिगते संक्रामति द्वितीयाक्षः । . द्वावपि गत्वांतमादिगते संक्रामति प्रथमाक्षः ॥४०॥
टीका - तीसरा प्रमाद का अम इंद्रिय, सो पालाप का अनुक्रम करि अपने पर्यन्त जाइ स्पर्शनादि क्रम तै पांच आलापनि विपं श्रोत्र पर्यन्त जाइ, बहुरि वाहुडि युगपत् अरने प्रथम स्थान स्पर्शन की प्राप्त होड, तब दूसरा प्रमाद का अन कपाय, नो पहले बोन्प प्रथम स्थान की प्राप्त था, ताकी छोडि अपना दूसरा स्थान मान