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[ गोम्मटसार जीवकाण्ट गाथा १० टीका - मिथ्यादृष्टि जीव है, सो उपदिप्ट कहिए अर्हन्त आदिकनि करि उपदेस्या हुआ प्रवचन कहिए प्राप्त, पागम, पदार्थ इनि तीनो की नाही श्रद्ध है, जात प्र कहिए उत्कृष्ट है वचन जाका, असा प्रवचन कहिए प्राप्त । बहुरि प्रकृप्ट जो परमात्मा, ताका वचन सो प्रवचन कहिए परमागम । वहुरि प्रकृष्ट उच्यते कहिए प्रमाण करि निरूपिए जैसा प्रवचन कहिए पदार्थ, या प्रकार निरुक्ति करि प्रवचन शब्द करि प्राप्त, आगम, पदार्थ तीनों का अर्थ हो है । बहुरि सो मिथ्यादृष्टि असद्भाव कहिए मिथ्यारूप; प्रवचन कहिए आप्त आगम, पदार्थ; उपदिष्टं कहिए प्राप्त कीसी आभासा लिए कुदेव जे है, तिनकरि उपदेस्या हुअा अथवा अनुपदिष्ट कहिए बिना उपदेस्या हुआ, ताकौं श्रद्धान करै है । वहुरि वादी का अभिप्राय लेड उक्तं च गाथा कहै है -
"घडपडथंभादिपयत्येसु मिच्छाइट्टी जहावगमं । सहहतो वि अण्णारणी उच्चदे जिणवयणे सद्दहणाभावादो ॥"
याका अर्थ- घट, पट, स्तंभ आदि पदार्थनि विपै मिथ्यादृष्टि जीव यथार्थ जान लीए श्रद्धान करता भी अनानी कहिए, जाते जिनवचन विष श्रद्धान का अभाव है । अंसा सिद्धांत का वाक्य करि कह्या मिथ्यादृष्टि का लक्षण जानि सो मिथ्यात्व भाव त्यजना योग्य है । ताका भेद भी इस ही वाक्य करि जानना । सो कहिए हैं - कोऊ मिथ्यादर्शनरूप परिणाम प्रात्मा विपै प्रकट हा थका वर्ण-रसादि की उपलब्धि जो ज्ञान करि जानने की प्राप्ति, ताहि होते संते कारणविपर्यास, बहुरि भेदाभेदविपर्यास, बहुरि स्वरूपविपर्यास की उपजावै है।
____तहां कारणविपर्यास प्रथम कहिए है। रूप-रसादिकनि का एक कारण है, नो अमूर्तीक है, नित्य है असे कल्पना कर है । अन्य कोई पृथ्वी आदि जातिभेद लोग भिन्न-भिन्न परमाणु हैं, ते पृथ्वी के च्यारि गुणयुक्त, अपके गव विना तीन गुणयुक्त, अग्नि के रन विना दोय गुगयुक्त, पवन के एक स्पर्श गुणयुक्त परमाणु हैं, ते अपनी नमान हानि के कार्यनि की निपजाबनहारे हैं, जैसा वर्णन कर है। या प्रकार कारण शिविपरीतभाव जानना ।
बहुरि भदाभेदविपर्यान कहै हैं- कार्य ते कारण भिन्न ही है अथवा अभिन्न ही मी मना दाभेद विप अन्यथापना जानना ।