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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ७२८ ७६४ ]
बहरि नवमां कोठा विर्षे योग, तहां मन के च्यारि, तिनकी असी म ४॥ वचन के च्यारि, तिनकी असी व ४ काय के विष औदारिकादिकनि की असी औ। औं मि। वै। वै मि । प्रा । आ मि । का । अथवा औदारिक, औदारिकमिश्र इनि दोऊनि की असी औ२ । वैक्रियिक द्विक की जैसी वै २। आहारक द्विक की जैसी आ २। बहुरि सयोगी के सत्य, अनुभय, मन-वचन पाइए । तिनकी जैसी म २ । व २ । बहुरि बेद्रियादिक के अनुभय वचन पाइए, ताकी जैसी अनु व १। सहनानी है। - .बहुरि दशवां कोठा विर्षे वेद, तहां नपुंसकादिक की असी न । पु । स्त्री सहनानी है।
वहरि ग्यारहवां कोठा विष कषाय, तहां क्रोधादिक की असी को। मा। माया । लो । सहनानी है । बहुरि बारह्वां कोठा विर्षे ज्ञान, तहां कुमति, कुश्रुत, विभंग की जैसी कुम । कुश्रु । वि। अथवा इन तीनों की असी कुज्ञान ३ । बहुरि मतिज्ञानादिक की म । श्रु । अ। म । के। अथवा मति, श्रुत, अवधि तीनों की असी मत्यादि ३ । मति, श्रुत, अवधि, मन.पर्यय की जैसी मत्यादि ४ । सहनानी है ।
बहुरि तेरहवां कोठा विर्षे संयम, तहां संयमादिक की असी अ । दे । सा । छ । प । सू। य । सहनानी है।
बहुरि चौदहवां कोठा विर्ष दर्शन, तहां चक्षु आदि की जैसी च । अच । अव। के । अथवा चक्षु अचक्षु अवधि तीनों की असी चक्षु आदि ३ सहनानी है।
बहुरि पद्रह्वां कोठा विष लेश्या, तहां द्रव्य लेश्या की सहनानी असी द्र। याके प्रागै जितनी द्रव्य लेश्या पाइए, तितने का अंक जानना । बहुरि भाव लेश्या की सहनानी असी भा। याके आगें जितनी भावलेश्या पाइए तितने का अंक जानना । दोऊ ही जागै कृष्णादिक नामनि की असी कृ । नी । क । इनि तीनों की जैसी अशुभ ३। तेज प्रादिक की जैसी ते। प। शु। इन तीनों की असी शुभ ३ । सहनानी जाननी ।
वहुरि सोलहवां कोठाविप भव्य, सो भव्य अभव्य की असी भ।अ। सहनानी है।
सतरहवां कोठा विर्ष सम्यक्त्व, तहां मिथ्यादिक की असी मि । सा। मिश्र । उ । वे।क्षा । सहनानी है ।