SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 665
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६० ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गामा ७२७-७२८ प्राण है । तिसही के वचन बिना तीन हो हैं । कायबल बिना दोय होय है । प्रयोगी एक आयु प्राण है । बहुरि संज्ञा च्यारि, गति च्यारि, इन्द्रिय पांच, काय छह, योग पंद्रह तिनमें पर्याप्त अवस्था संबंधी ग्यारह, अपर्याप्त अवस्था संबंधी तीन मिश्र अर एक कार्माण ए च्यारि हैं । वेद तीन, कषाय च्यारि, ज्ञान आठ, संयम सात, दर्शन च्यारि, लेश्या छह, भव्य दोय, सम्यक्त्व छह, संज्ञी दोय, आहार दोय, उपयोग बारह, ए सर्व समुउच्च गुणस्थान वा मार्गणा स्थाननि विषै यथायोग्य प्ररूपण करने । जीवसमास विषे विशेष कहै है। ओघे आदेसे वा, सरगीपज्जतगा हवे जत्थ । तत्थ य उणवीसंता, इगि- बि-ति-गुणिदा हवे ठाणा ॥७२७॥ श्रधे देशे वा, संज्ञिपर्यन्तका भवेयुर्यत्र । तत्र चैकोनविंशांता, एकद्वित्रिगुणिता भवेयुः स्थानानि ॥ ७२७॥ टीका - गुणस्थान वा मार्गणास्थान विषे जहां संज्ञी पंचेंद्री पर्यंत मूल चौदह जीवसमास निरूपण करिए, तहां उत्तर जीवसमास एक नै आदि देकर उगणीस पर्यंत सामान्य करि, दोय पर्याप्त अपर्याप्त करि, तीन पर्याप्त, अपर्याप्त, लब्धि अपर्याप्त करि गुरणे, एकने यादि देकर उगणीस पर्यंत वा दोय ने आदि देकर अठतीस पर्यंत वा तीन ने प्रादि देकरि सत्तावन पर्यंत जीवसमास के भेद है । ते सर्व भेद तहा जानने । सामान्य जीवसमास एक, त्रस - स्थावर भेदते दोय, इत्यादि सर्वभेद जीवसमास अधिकार विषै कहे है; सो जानने । इनिकों एक, दो, तीन करि गुणं क्रमतें एक, दो, तीन यादि उगणीस, अठतीस सत्तावन पर्यंत भेद हो है । इहा ते ग्राग गुणस्थानमार्गणा विषे गुणस्थान, जीवसमास इत्यादि बीस भेद जोडिए है; सो कहिए है - वीर - सुह-कमल-रिगग्गय-सयल - सुय-ग्गाहरण-पय उरण - समत्थं । मिऊण गोयममहं सिद्धंतालावमणुवोच्छं ॥७२८ ॥ वीरमुखकमलनिर्गत सकल श्रुतग्रहणप्रकटनसमर्थम् । नत्वा गौतममहं सिद्धांतालापमनुवक्ष्ये ||७२८ ॥
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy