________________
ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
[ ७३१
लक्षण अमूर्ति कहिए तो अमूर्तिकपना जीव विषै भी है अर धर्मादिक विष भी है । बहुरि जहा लक्षरण का एकदेश विषे लक्षण पाइए, तहां अव्याप्ति दोष है । जैसे जीव का लक्षण रागादिक कहिए तो रागादिक संसारी विषै तो संभवै, परि सिद्ध जीवन विषै संभव नाही । बहुरि जो लक्ष्य ते विरोधी लक्षण होइ, सो असंभवी कहिए । जैसै जीव का लक्षण जड़त्व कहिए. सो संभव ही नाही । जैसे त्रिदोष रहित उपयोग ही जीव का लक्षण जानना ।
मदि- सुद-ओहि मणेह य सग-सग-विसये विसेस विष्णारणं । अंतीमहत्तकालो, उवजोगो सो दु सायारो ॥६७४॥
मतिश्रुतावधिमनोभिश्च स्वकस्वकविषये विशेषविज्ञानं । अंतर्मुहूर्तकाल, उपयोगः स तु साकारः || ६७४॥
टीका मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय ज्ञाननि करि अपने - अपने विषय विपैं जो विशेष ज्ञान होइ, अंतर्मुहूर्तं काल प्रमाण पदार्थ का ग्रहण रूप लक्षण धरै, जो उप योग होइ, सो साकार उपयोग है । इहां वस्तु का ग्रहरण रूप जो चैतन्य का परिणमन, ताका नाम उपयोग है । मुख्यपने उपयोग है, सो छद्मस्थ के एक वस्तु का ग्रहण रूप चैतन्य का परिणमन अंतर्मुहूर्त मात्र ही रहै है । ताते अंतर्मुहूर्त ही कहा है ।
इंदियमणोहिणा वा प्रत्थे अविसेसिदूरण जं गहणं । अंतोमुहुत्तकालो, उवजोगो सो अणायारो ॥ ६७५ ॥
इंद्रियमनोsवधिना, वा श्रर्थे श्रविशेष्य यद्ग्रहणम् । अंतर्मुहूर्तकालः उपयोगः स अनाकारः ॥ ६७५ ॥
टीका - नेत्र इन्द्रियरूप चक्षुदर्शन वा अवशेष इन्द्रिय र मनरूप प्रचक्षु दर्शन वा अवधि दर्शन, इनकरि जो जीवादि पदार्थनि का विशेष न करिकै निर्विकल्पपनै ग्रहण होइ, सो अंतर्मुहूर्त काल प्रमाण सामान्य अर्थ का ग्रहण रूप निराकार उपयोग है ।
भावार्थ - वस्तु सामान्य विशेषात्मक है । तहा सामान्य का ग्रहण की निराकार उपयोग कहिए, विशेष का ग्रहण को साकार उपयोग कहिए । जातं सामान्य विषे वस्तु का आकार प्रतिभास नाही; विशेप विप आकार प्रतिभास है ।