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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
[ ७२३ अब इहां नव पदार्थनि का परिमाण कहिए है
जीव द्रव्य तौ द्विरूपवर्गधारा विर्षे कहे अपने प्रमाण लोए है । वहुरि अजीवविष पुद्गल द्रव्य जीवराशि तें अनंत गुणे है । धर्मद्रव्य एक है । अधर्मद्रव्य एक है। आकाश द्रव्य एक है। कालद्रव्य जगच्छे णी का घन, जो लोक, तीहि प्रमाण है । सो पुद्गल का परिमाण विषै धर्म, अधर्म, आकाश, काल का परिमाण मिलाएं, अजीव पदार्थ का परिमाण हो है।
___ बहुरि असंयत अर देशसंयत का परिमाण मिलाए, तिन विप प्रमत्तादिकनि का प्रमाण संख्यात मिलाएं, जो प्रमाण होइ, तितने पुण्य जीव है । बहुरि किंचिदून द्वयर्द्धगुणहानि करि गुणित समयप्रबद्ध प्रमाण कर्म परमाणूनि की सत्ता है ताके संख्यातवे भागमात्र शुभ प्रकृतिरूप अजीव पुण्य है । बहुरि मिश्र अपेक्षा किछु अधिक जो पुण्य जीवनि का प्रमाण, ताको संसारी राशि में घटाएं, जो प्रमाण रहे, तितने पाप जीव है । बहुरि द्वयर्धगुणहानि करि गुणित समयप्रवद्ध को संख्यात का भाग दीजिए, तहां एक भाग बिना अवशेष भाग प्रमाण अशुभ प्रकृतिरूप अजीव पाप हैं । बहुरि आस्रव पदार्थ समयप्रबद्ध प्रमाण है। संवर पदार्थ समयप्रवद्ध प्रमाण है। निर्जराद्रव्य गुणश्रेणी निर्जरा विर्षे उत्कृष्टपनै जितनी निर्जरा होइ तीहिं प्रमाण है। बंध पदार्थ समयप्रबद्ध प्रमाण है । मोक्षद्रव्य द्वयर्घ गुणित समयप्रवद्ध प्रमाण है।
इति आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार द्वितीय नाम पचसग्रह न थ की जीवतत्त्वप्रदीपिका नाम सस्कृत की टीका के अनुसारि सम्यग्ज्ञानचद्रिका नामा भापारीका विष जीवकाण्ड विष प्ररूपित जे वीस प्ररूपणा तिनविप सम्यक्त्वमार्गणा
प्ररूपणा नाम सतरहवा अधिकार सपूर्ण भया ॥१७॥
जो उपदेश सुनकर पुरुपार्थ करते है, वे मोक्ष का उपाय कर सकते हैं और जो पुरुषार्थ नही करते वे मोक्ष का उपाय नही कर सकते । उपदेश नो शिक्षामात्र है, फल जैसा पुरुषार्थ करे, वैसा लगता है।
- मोक्षमार्ग प्रकाशक - अध्याय -पृष्ठ-३१०
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