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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ६५८-६५
वर्षपृथक्त्वे क्षायिकाः, संख्येया यदि भवंति सौधर्मे । तह संख्यपत्यस्थितिके, कति एवमनुपाते ॥ ६५७॥
टीका - क्षायिक सम्यक्त्वी बहुत कल्पवासी देव हो है । बहुरि कल्पवासी देव बहुत सौधर्म - ईशान विषै है, ताते कहैं । जो पृथक्त्व वर्ष विषै क्षायिक सम्यक्त्वी सौधर्म - ईशान विषे संख्यात प्रमारण उपजै तौ संख्यात पल्य की स्थिति विषै कितने उपजै ? जैसा त्रैराशिक करना । इहां प्रमाण राशि पृथक्त्व वर्ष प्रमाण काल, फलराशि संख्यात जीव, इच्छा राशि संख्या पल्य प्रमाण, कालसो फलते इच्छा कौं गुरौं, प्रमाण का भाग दीएं जो लब्धि राशि भया, सो कहैं हैं
संखावलिहिदपल्ला, खइया तत्तो य वेदमुवसमया । आवलिअसंखगुणिदा, असंखगुणहीणया कमसो ॥ ६५८॥
संख्यावलिहितपत्याः, क्षायिकास्ततश्च वेदमुपशमकाः । आवल्यसंख्यगुणिता, असंख्यगुणहीनकाः क्रमशः ||६५८ ।।
टीका - सो लव्ध राशि का प्रमाण संख्यात प्रावली का भाग पल्य कौं
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दीएं, जो प्रमाण होइ, तितना आया, सो तितने ही क्षायिक सम्यग्दृष्टी जानने । बहुरि इनको आवली का प्रसंख्यातवां भाग करि गुणै, जो प्रमाण होइ, तितने वेदक सम्यदृष्टी जानने । वहुरि क्षायिक जीवा का परिमाण ही ते प्रसंख्यात गुणा घाटि उपशम सम्यग्दृप्टी जीव जानने ।
पल्लासंखेज्जदिमा, सासाणमिच्छा य संखगुणिदा हु । मिस्सा तहि विहीणो, संसारी वामपरिमाणं ॥ ६५६ ॥
पल्या संख्याताः, सासनमिथ्याश्च संख्यगुरिगता हि । मिश्रास्तविहीनः, संसारी वामपरिमाणम् ||६५६ ॥
टीका - पल्य के असंख्यातवे भाग प्रमाण सासादन, तेई मिथ्याती सामान्य है, तिनिका परिमाण है, तिनतै संख्यात गुणे सम्यग्मिथ्यादृष्टी जीव है । बहुरि इन पंच सम्यक्त्व संयुक्त जीवनि का मिलाया हूवा परिमाण को संसारी राशि में घटाएं, जो प्रमाण अवशेष रहे, तितने वाम कहिए मिथ्यादृष्टी, तिनिका परिमाण है ।