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________________ ७२० ] ( गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ६५२-६५४ भावार्थ च्यारि लब्धि तौ संसार विषै अनेक बार हो है । बहुरि करण --- लब्धि की प्राप्ति भएं सम्यक्त्व वा चारित्र अवश्य हो हे । आगे उपशमसम्यक्त्व के ग्रहणे को योग्य जो जीव ताका स्वरूप कहै हैं चदुर्गादिभव्वो सण्णी, पज्जत्तो सुज्भगो य सागारो । जागारो सल्लेस्सो सलद्विगो सम्ममुवगमई ॥ ६५२॥ चतुर्गतिभव्यः संज्ञी पर्याप्तश्च शुद्धकश्च साकारः । जागरूक : सल्लेश्यः, सलब्धिकः सम्यक्त्वमुपगच्छति ॥ ६५२ || टीका - जो जीव च्यारि गति में कोई एक गति विषै प्राप्त असा भव्य होइ, सैनी होइ, पर्याप्त होइ, मदकषायरूप परिणामता विशुद्ध होइ, स्त्यानगृद्धयादिक तीन निद्रा ते रहित होने ते जागता होइ, भावित शुभ तीन लेश्यानि विपैं कोई एक लेश्या का धारक होइ, करणलब्धिरूप परिणया होइ; असा जीव यथासंभव सम्यको प्राप्त हो है । चत्तारि विखेत्ताई, श्राउगबंधेग होइ सम्मत्तं । अणुवदमहत्वदाई, ण लहइ देवाउ गं मोल्तं ॥ ६५३ ॥ चत्वार्यपि क्षेत्राणि, आयुष्कबंधेन भवति सम्यक्त्वम् । अणुव्रत महाव्रतानि न लभते देवायुष्कं मुक्त्वा ।। ६५३।। टीका च्यारि आयु विषै किसी ही परभव का आयु बंध कीया होइ, तिस बद्धायु जीव के सम्यक्त्व उपजै, इहां किछू दोष नाही । बहुरि अणुव्रत र महाव्रत जिसके देवायु का बंध भया होइ, तिसहीकै होइ । जो पहिले नारक, तिर्यंच, मनुष्यायु का बंध मिथ्यात्व में भया होइ, तौ पीछे अणुव्रत, महाव्रत होइ नाही । यह नियम है । - रण यमिच्छत्तं पत्तो, सम्मत्तादो य जो य परिवडिदो । सो सासणो त्ति पेयो, पंचमभावेण संजुत्तो ॥ ६५४ ॥ न च मिथ्यात्वं प्राप्तः सम्यक्त्वतश्च यश्च परिपतितः । स सासन इति ज्ञेयः, पंचमभावेन संयुक्तः ||६५४॥
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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