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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ६४४-६४५
जीवेतरस्मिन् कर्मचये, पुण्यं पापमिति भवंति पुण्यं तु । शुभप्रकृतीतां द्रव्यं पापं अशुभप्रकृतीनां द्रव्यं तु ॥ ६४३ ॥
टीका जीव पदार्थ संबंधी प्रतिपादन विषे सामान्यपर्ने गुणस्थाननि विषै मिथ्यादृष्टी अर सासादन ए तो पापजीव हैं । बहुरि मिश्र है ते पुण्य-पापरूप मिश्र जीव है; जाते युगपत् सम्यक्त्व पर मिथ्यात्वरूप परिणए है । बहुरि असंयत तौ सम्यक्त्व करि संयुक्त है । अर देशसंयत सम्यक्त्व पर देशव्रत करि संयुक्त हैं । ग्रर प्रमत्तादिक सम्यक्त्व अर सकलव्रत करि संयुक्त है । ताते ए पुण्यजीव है । यसै कहि, याके अनंतरि जीव पदार्थ संबंधी प्ररूपणा करें हैं ।
तहां कर्मचय कहिए कार्मारणस्कंध, तिसविषै पुण्यपापरूप दोय भेद है । तातें अजीव दो प्रकार है । तहां साता वेदनी नरक बिना तीन आयु, शुभ नाम, उच्चगोत्र ए शुभ प्रकृति है । तिनिकौं द्रव्यपुण्य कहिए । बहुरि घातिया कर्मनि की सर्व प्रकृति, असातावेदनी, नरक आयु, अशुभ नाम, नीच गोत्र ए अशुभ प्रकृति हैं । तिनिक द्रव्यपाप कहिए ।
आसव-संवरदव्वं, समयपबद्धं तु णिज्जरादव्वं ।
तत्तो असंखगुणिदं, उक्कस्सं होदि नियमेण ॥ ६४४॥
प्रात्रवसवरद्रव्यम्, समयप्रबद्धं तु निर्जराद्रव्यम् । ततोऽसंख्यगुणितमुत्कृष्टं भवति नियमेन || ६४४॥
टीका - बहुरि प्रस्रव द्रव्य र सवर द्रव्य समयप्रबद्ध प्रमाण है; जातें एक समय विषै आस्रव समयप्रबद्ध प्रमाण पुद्गल परमाणूनि ही का हो है । बहुरि सवर होइ तौ तितने ही कर्मनि का प्रस्रव न होइ ताते द्रव्य संवर भी तितना ही कह्या । बहुरि उत्कृष्ट निर्जरा द्रव्य समयप्रबद्ध ते असंख्यात गुणा नियम करि जानना; जातै गुणश्रेणी निर्जरा विषै उत्कृष्टपने एक समय विषै असंख्यात समयप्रबद्धनि की निर्जरा कर है ।
बंधो समयपबद्धो, किंचूरणदिवड्ढमेत्तगुणहाणी |
मोक्खो य होदि एवं सद्दहिदव्वा तु तच्चट्ठा ॥ ६४५ ॥
बंधः समयप्रबद्धः, किंचिद्नद्वयर्धमात्रगुरणहानिः ।
मोक्षश्च भवत्येवं श्रद्धातव्यास्तु तत्त्वार्थाः ||६४५॥
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