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| गौम्मटसार जीवका गाया '.६५
बहुरि ताके ऊपरि सांतर निरंतर वर्गणा है; तहां उत्कृप्ट ध्रुववर्गणा ते एक परमाणू अधिक भए जघन्य भेद हो है । इस जघन्य को अनंतगुणा जीवराणि का प्रमाण करि गुण, उत्कृष्ट भेद हो है ।
बैसै जो ए अणुवर्गणा ते लगाइ पंद्रह वर्गणा कही, ते सदृश परिमाण की लोएं, एक एक वर्गणा लोक विर्षे अनंत पुद्गल राशि का वर्गमूल प्रमाण पाइए है। परि किछ घाटि घाटि क्रम तै पाइए है । तहां प्रतिभागहार सिद्ध अनंतवां भागमात्र है । सो इस कथन कौं विशेष करि आगे कहिएगा।
बहुरि ताके ऊपरि शून्यवर्गणा है, तहां उत्कृष्ट सांतर निरन्तर वर्गणा ते एक एक परमाणू अधिक भए जघन्य भेद हो है । इस जघन्य को अनंतगुणा जीवराशि का प्रमाण करि गुणे, उत्कृष्ट भेद हो है । असें सोलह वर्गणा सिद्ध भई।
बहुरि ताके ऊपरि प्रत्येक शरीर वर्गणा है; सो एक शरीर एक जीव का होइ, ताको प्रत्येक शरीर कहिए। तहां जो विस्रसोपचय सहित कर्म वा नोकर्म, तिनिका एक स्कंध ताको प्रत्येक शरीर वर्गणा कहिये । तहां शून्यवर्गणा का उत्कृष्ट ते एक परमाणू करि अधिक जघन्य भेद हो है; सो यह जघन्य भेद कहां पाइये है ? सो कहिए है
__ जाका कर्म के अश क्षयरूप भए है, असा कोई क्षपितकर्माश जीव, सो कोटि पूर्व वर्ष प्रमाण आयु का धारी मनुष्य होइ, अतमुहूर्त अधिक आठ वर्ष के ऊपरि सम्यक्त्व पर सयम दोऊ एक काल अंगीकार करि सयोग केवली भया, सो किछु घाटि कोटि पूर्व पर्यत औदारिक शरीर पर तैजस शरीर की तो जो प्रकार कह्या है, तैसे निर्जरा करत सता अर कार्माण शरीर की गुण श्रेणी निर्जरा करत संता, अयोगकेवली का अत समय को प्राप्त भया, ताकै आयु कर्म, औदारिक, तैजस शरीर अधिक नाम, गोत्र, वेदनीय कर्म के परिमाणूनि का समूह रूप जो औदारिक,, तेजस, कार्मारण, इनि तीनि शरीरनि का स्कंध, सो जघन्य प्रत्येक शरीर वर्गणा है । बहुरि इस जघन्य कौं पल्य का असख्यातवां भागकरि गुणे, उत्कृष्ट प्रत्येक शरीर वर्गणा हो है । सो कहां पाइए ? सो कहिए है
नदीश्वर नामा द्वीप विर्षे अकृत्रिम चैत्यालय है। तहां धूप के घड़े हैं । तिनि विष वा स्वयभूरमण द्वीप विष उपजे दावानल, तिनि विर्ष जे बादर पर्याप्त अग्नि