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________________ ૨૦૪ ! गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ५६०-५६? terraप्रदेशे, एकैके ये स्थिता हि एकैकाः । रत्नानां राशिरिव, ते कालारणवो मंतव्याः || ५८९ ॥ टीका - लोकाकाश का एक-एक प्रदेश विषै जे एक-एक तिष्ठ है । जैसे रत्ननि की राशि भिन्न-भिन्न तिष्ठे तैसे जे भिन्न-भिन्न तिष्ठे है, ते कालाणू जानने । ववहारो पुण कालो, पोग्गलदव्वादणंतगुणमेत्तो । तत्तो अतगुणिदा, आगासपदेसपरिसंखा ॥५६०॥ व्यवहारः पुनः कालः, पुद्गलद्रव्यादनंतगुरणमात्रः । तत अनंतगुणिता, प्राकाशप्रदेशपरिसंख्या ॥५९०॥ टीका - बहुरि व्यवहार काल पुद्गल द्रव्य तै अनंत गुणा समयरूप जानना । बहुरि तिनि तें अनतगुणी सर्व आकाश के प्रदेशनि की संख्या जाननी । लोगागासपदेसा, धम्माधम्मेगजीवगपदेसा । सरिसा हु पदेसो पुण, परमाणु-श्रवट्ठिदं खेत्तं ॥ ५६१॥ लोकाकाशप्रदेशा, धर्माधर्मैकजीवगप्रदेशाः । सदृशा हि प्रदेशः, पुनः परमाण्ववस्थितं क्षेत्रम् ॥ ५११॥ टीका - लोकाकाश के प्रदेश अर धर्मद्रव्य के प्रदेश र अधर्मद्रव्य के प्रदेश अर एक जीवद्रव्य के प्रदेश सर्व सख्याकरि समान है, जाते सर्व जगच्छ्रेरेरेणी का घनप्रमाण है । बहुरि पुद्गल परमाणू जेता क्षेत्र को रोकै, सो प्रदेश का प्रमाण है; ताते जघन्य क्षेत्र पर जघन्य द्रव्य अविभागी है । आगे क्षेत्र प्रमाण करि छह द्रव्यनि का प्रमाण कीजिए है । तहां जीव द्रव्य अनंतलोक प्रमाण है । लोकाकाश के प्रदेशनि ते अनंत गुणा है । कैसे ? सो त्रैराशिक करि कहिए है - प्रमाण राशि लोक, अर फलराशि एक शलाका, अर इच्छाराशि जीवद्रव्य का प्रमाण । सो फल करि इच्छा को गुणै, प्रमारण का भाग दीए, लब्धराशि जीवराशि कौ लोक का भाग दीजिए, इतना आया, सो यहु शलाका का परिमाण भया । वहुरि प्रमाण राशि एक शलाका, फलराशि लोक, अर इच्छाराशि पूर्वोक्त शलाका का प्रमाण, सो पूर्वोक्त शलाका का प्रमाण जीवराशि कौ लोक का भाग दीए, अनंत पाए, सो जानना । इस अनंत को फलराशि लोक करि गुणिए
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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