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[ गोम्मटसार जीवकाण्ठ गाया ५६५-५६६
परमाणू गोल कह्या है; सो यहु षट्कोण को लीए आकार गोल क्षेत्र ही का भेद है, तातै गोल कला है । जैसे अणू वा स्कंधरूप पुद्गल द्रव्य तो रूपी ग्रजीव द्रव्य जानना । बहुरि धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य, काल द्रव्य ए चार्या ग्ररूपी अजीव द्रव्य जानने इति । नामाधिकार ।
उवजोगो वण्णचऊ, लक्खरणमिह जीवपोग्गलाखं तु । गदिठाणोग्गहवत्तणकिरियुवयारो दु धम्मचऊ ॥ ५६५॥
उपयोगो वर्णचतुष्कं लक्षणमिह जीवपुद्गलानां तु । गतिस्थानावगाहवर्तन क्रियोपकारस्तु धर्मचतुर्णाम् ॥५६५ ॥
टीका - द्रव्यनि के लक्षण कहै है । तहां जीव श्रर पुद्गलनि के लक्षण (क्रमशः ) उपयोग र वर्ण चतुष्क जानना । तहां दर्शन ज्ञान उपयोग जीवनि का लक्षरण है । वर्ण, गंध, रस, स्पर्श पुद्गलनि का लक्षण है । बहुरि गति, स्थान, अवगाह, वर्तनारूप क्रिया का उपकार ते धर्मादिक च्यारि द्रव्यनि के लक्षण हैं । तहां गतिहेतुत्त्व धर्म द्रव्य का लक्षण हैं । स्थितिहेतुत्व अधर्मं द्रव्य का लक्षण है । अवगाह हेतुत्व आकाश द्रव्य का लक्षण है । वर्तनाहेतुत्व काल द्रव्य का लक्षण है ।
गावठाणोग्गहकिरिया, जीवाणं पुग्गलाणमेव हवे ।
धम्मतियेण हि किरिया, मुक्खा पुण साधना होंति ॥५६६ ॥
गतिस्थानावगाहक्रिया, जीवानां पुद्गलानामेव भवेत् ।
धर्मत्रिके न हि क्रिया, मुख्याः पुनः साधका भवंति ॥५६६ ॥
टीका गति, स्थिति, अवगाह ए तीन क्रिया जीव अर पुद्गल ही के पाइए है । तहाँ प्रदेश ते प्रदेशातर विषै प्राप्त होना, सो गति क्रिया है । गमन करि कही तिष्ठना, सो स्थिति क्रिया है । गति-स्थिति लीए वास करना, सो अवगाह क्रिया जानना | बहुरि धर्म, अधर्म, आकाश विषे ए क्रिया नाही है; जाते इनके स्थान चलन प्रदेशचलन का अभाव है । तहां अपने स्थान को छोडि अन्य स्थान होना, सो स्थानचलन कहिए । प्रदेशनि का चंचलरूप होना सो प्रदेशचलन कहिए । बहुरि धर्मादिक द्रव्य गति, स्थिति, अवगाह क्रिया के मुख्य साधक हैं ।