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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ५६. ६५० ] स्निग्ध, रूक्ष, वर्ण, गधादि भाव को लीए ग्रहण कीए थे; तेई पुद्गल. तिस ही स्निग्ध, रूक्ष, वर्ण गंधादि भाव को लीए शुद्ध गृहीतरूप ग्रहण कीजिए है; सो यह सब मिल्या हुवा संपूर्ण नोकर्म द्रव्य परिवर्तन जानना ।
आगे कर्म पुद्गल परिवर्तन कहिए है-किसी जीवने एक समय विर्षे आठ प्रकार कर्मरूप जे पुद्गल ग्रहे, ते एक समय अधिक ओवली प्रमाण आबाधा काल को गए पीछे द्वितीयादि समयनि विष निर्जरारूप कीए, पीछे जैसा अनुक्रम आदि तै लगाइ, अंत पर्यंत नोकर्म द्रव्य परिवर्तन विष कह्या, तैसा ही अनुक्रम सर्व चारयो परिवर्तन संबंधी इस कर्म द्रव्य परिवर्तन विष जानना ।
। विशेष इतना-तहां नोकर्म सबंधी पुद्गल थे,इहां कर्म संबंधी पुद्गल जानने । अनुक्रम विषै किछू विशेष नाही । पीछे पहिले समय जैसे पुद्गल ग्रहे थे, तेई पुद्गल तिस ही भाव को लीए, चतुर्थ परिवर्तन के अनतर समय विर्षे ग्रहण होइ; सो यहु सर्व मिल्या हवा संपूर्ण कर्म परिवर्तन जानना । इस द्रव्य परिवर्तन को पुद्गल परिवर्तन भी कहिए है । सो नोकर्म पुद्गल परिवर्तन का अर कर्मपुद्गल परिवर्तन का काल समान है । बहुरि इहां इतनां जानना - पूर्व जो कम कह्या, तहा जैसे पहिले अनत वार अगृहीत का ग्रहण कह्या, तहा वीचि वीचि मे गृहीत' ग्रहण वा मिश्र ग्रहण भी होइ, सो अनुक्रम विष तो पहिली बार अर दूसरी बार आदि जो अगृहीत ग्रहण होइ, सोई गिणने मे आ है । अर काल परिमाण विषे गृहीत, मिश्र ग्रहण का समय सहित सर्व काल गिणने मे आवै है । जिनि समयनि विर्षे गृहीत का ग्रहण है, ते समय गृहीत ग्रहण के काल विष गिणने मे आवै है। जिनि समयनि विष मिश्र का ग्रहण हो है, ते समय मिश्र ग्रहण के काल विर्ष गिणने में आवै है। जिन समयनि विपै अगृहीत ग्रहण हो है, ते समय अगृहीत ग्रहण काल विष गिणने मे आवै है; सो यह उदाहरण कह्या है; असे ही सर्वत्र जानना । क्रम विष तौ जैसा अनुक्रम कह्या होइ, तैसै होइ, तब ही गिणने में आवै । अर तिस अनुक्रम के बीचि कोई अन्यरूप प्रवत, सो अनुक्रम विर्षे गिणने मे नाही । अर जिनि समयनि विषै अन्यरूप भी प्रवतें है, तिनि समयनिरूप जो काल, सो परिवर्तन का काल विष गिणने मे आवै ही है । जैसे ही क्षेत्रादि परिवर्तन विर्ष भी जानना ।
जैसे क्षेत्र परिवर्तन विष किसी जीवने जघन्य अवगाहना पाई, परिवर्तन प्रारंभ कीया, पीछे केते एक काल अनुक्रम रहित अवगाहना पाई, पीछे अनुक्रमरूप अवगा